Wednesday, May 13, 2020

आज 13/05 को शाम के सत्संग में पढ़ा गया पाठ-बचन





**राधास्वामी!!                                         13-05 -2020 -                                             
आज शाम के सत्संग में पढ़े गए पाठ -                                 
 (1) चरनन में चित्त लगाओ। जग आसा दूर हटाओ ।। (प्रेमबानी-3, शब्द -9- पृष्ठ संख्या- 253) 
                                                            (2) जा मंदिर में दासता नहीं दीप उजियास।  प्रेम भक्ति और सील का तहाँ न जानो बास।। (प्रेमबिलास - शब्द 112- दोहे (दासता) पृष्ठ संख्या 168)                                               
 ( 3 ) सतसंग के उपदेश- भाग तीसरा -कल से आगे

-🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!   
                              
13-05 -2020 -                                     

आज शाम के सत्संग में पढा गया बचन-

 कल से आगे:-( 136)-।

 उद्दालक ऋषि ने अपने बेटे स्वेतकेतु से कहा ऐ पुत्र ! जैसे कोई शख्स किसी को कंधार से आंखें बाँध कर ले आवे और उसे सुनसान जंगल में छोड़ दें और वह बेचारा इस हालत में दाएं बाएं और आगे पीछे चक्कर काटता फिरे और पुकारे कि मुझे बंधी आंखों से लाया ंगया है और बंधी आँखो से छोड दियाहै।उस वक्त कोई दूसरा उसकी आंखों पर पट्टी खोल दें और कहे -"फुलाँ तरफ कंधार है उस तरफ को जाओ"  तो वह अगर अकलमंद व समझदार है एक गांव से दूसरे गांव का रास्ता  लेता हुआ एक दिन जरूर कंधार पहँच जावेगा। ठीक इसी तरह हर इंसान बंधी आंखों से संसार में लाया जाता है और बंधी आंखों से छोड़ दिया जाता है ।

जिस इंसान को आचार्य यानी असली देश का जानने वाला सतगुरु मिल गया है वह     " उस सत्त को" जान लेता है और उसके लिए सिर्फ इतनी देर का मुआमला रह जाता है जब तक वह अपने भौतिक शरीर से अलहदा नहीं होता । शरीर से अलहदा होते ही वह फौरन सत्त को प्राप्त होता है । जो लोग ऋषियों के बचनों में श्रद्धा रखते हैं उन्हें चाहिए कि इस बचन को गौर से पढ़ें और बिचारें आया उन्हे अब  भी सतगुरु की जरूरत महसूस होती है या नहीं। हुजूर राधास्वामी दयाल का बचन है:-   
                                                  
 अब अनाम जहँ रुप न नामा। संत करें जा वहाँ विश्रामा।।                                          सुरत चेत पाया बिस्माद।नहिं जहँ बानी नहीं जहाँ नाद।।                                             आदि ना अन्त अनंत अपार । सन्तन का वह निज दरबार।।                                               संत सभी वा घर से आवें। काल देश से जीव चितावें।।                                                      जो चेते तिस ले पहुँचावें। सुरत -शब्द -मार्ग बतलावे।।                                                    जीव चेत जो माने कहना।ताको फिर दुख सुख नहीं सहना।।                                       इस बचन के अर्थो पर बिचार करने से मालूम होगा कि ऋषियों और संतों के उपदेश में किस कदर मेल है।।     
                                  
 🙏🏻 राधास्वामी 🙏🏻                                           
(सत्संग के उपदेश -भाग तीसरा।)**

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
।।।।।।।।।।।।।।।।

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