Sunday, May 17, 2020

आत्मनिर्भर दयालबाग / कुश मेहता





*आत्मनिर्भरता का पर्याय है दयालबाग़*


Articles Current Affairs Editors' Pick Hindi Sahitya/
written by Kush Mehta May 16, 2020

 **1915 से आत्मनिर्भरता के स्वर्णिम भारत की औजस तस्वीर
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जहाँ न पैसा बहता है, ना गरीबी रहती है, ना कोई भूखा सोता है, पर आत्म संतोष का तेज 90 वर्ष की आयु में भी नूर सा चमकता है। सम्पूर्ण आत्मनिर्भरता का ऐसा संगठन जहाँ न कोई आदमी सुस्त बैठता है, न बेकार! काम, काम और सिर्फ  काम ! हर कोई यहाँ सेवा के प्रकल्पो में निस्वार्थ भाव से इतना व्यस्त है की उसे जरा भी समय नहीं । निरंतर अथक परिश्रम, लगनशीलता व मेहनत से नए भारत के नव निर्माण का महान लक्ष्य। यह कटु सत्य है की बेकारी और सुस्ती की दशा में काल का पंजा लोगो पर चलता है, और इन दोनों का दूर दूर तक अथक मेहनत  के कारण कोई नामो निशान नहीं।छोटे से छोटे बच्चे से लेकर 90-95 वर्ष तक के बुजुर्ग सेवा में सलंग्न रहते है।

आत्मनिर्भर भारत का असली स्वरुप या स्वर्णिम भारत का यह मूर्त रूप यदि देखना हो तो आगरा स्थित दयालबाग़ इसका सर्वश्रेष्ठ उदहारण है । 1915 से आत्मनिर्भरता के महान प्रकल्पों को पूर्ण करने में पिछले 105 वर्षों से लगातार अपनी व्यापकता लियें दयालबाग़ पूरे विश्व में आकर्षण का केंद्र है। भारत के आज़ादी के कई वर्षों पहले जिस संस्था ने अपने अथक परिश्रम से या यह कहाँ जाये की अपने ख़ून पसीने से उस माटी को सींचा हो और बिना रुके निरंतरता में, अपने श्रेष्ठ और आधुनिक विचारों से दिन और रात परिश्रम से असली भारत का ख़ाका खिंचकर self government का एक आदर्श मॉडल तैयार किया हों, तो आप इसे क्या कहेंगे ? जहाँ बिना परिश्रम के कोई भोजन ना करे, जिनकी सुबह 3 बजे ही हो जाये व रात 9 बजे तक अगले सुबह के सपनो को यथार्थ में बदलने के लियें सब लोग विश्राम करने चले जाए, व आम दिनों में रात 9 बजे सन्नाटा पसर जाये जहाँ आधुनिक क्रांति के युग में भी किसी के घर पर टीवी ना हो, जहाँ खुद का जच्चा खाना (Maternity Hospital) हो और ख़ुद ही का अन्तिम विश्राम स्थल, जहाँ मनुष्य के पैदा होने से मरने तक जीवन की आवश्यकता अनुसार समुचित प्रबंध किया गया हो, जहाँ प्राथमिक विद्यालय से लेकर उच्च स्तरीय पढ़ाई का प्रबंध हो, जहाँ खुद की यूनिवर्सिटी हो, जहाँ खुद के कारखाने कारखानों में काम करने की शिक्षा, अपना खुद का बैंक, गौशाला, डेरी और जहाँ भोजन में उत्पादित अन्न के लिए किसी और को आसरा न हो, जहाँ अन्न का ख़ुद उत्पादन करने के लिए कृषि सेवा पर अत्यधिक बल दिया हो, जहाँ विकास के लिए नगर पंचायत हो, विद्युत  उत्पादन के लिए समूचे क्षेत्र में सोलर पैनल का इस्तेमाल हो। सेवा के प्रकल्पो और आत्मनिर्भरता के लिए जहाँ जीवन के उपयोग में आने वाली सामग्री के उत्पादन के लिए कई प्रकार की इकाइयाँ हों जहाँ विभिन्न प्रकार के उत्पादन उत्पादित किए जाते हो। और उस उत्पादित सामग्री में किसी प्रकार का कोई मुनाफ़ा न हो । गहरे अनुभव से लेकर आज तक के आधुनिक तकनीक का उपयोग कर आत्मनिर्भरता के इस महान लक्ष्य को समर्पित जहाँ की सुबह मालिक के स्मरण अर्थात सतसंग से होती हो और दिनभर के कार्यो के बाद मालिक का धन्यवाद करते हुवे प्रार्थना से दिन की समाप्ति हो, भारत के इस स्वर्णिम अध्याय को हम दयालबाग़ कहेंगा !
जी हाँ राष्ट्र के नाम सम्बोधन में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस बात का ज़िक्र किया उसके लिए दयालबाग़ जैसी महान संस्थाएं इस सपनों को पूरा करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। यद्यपि इस महान संगठन का राजनीती और अन्य किसी आंदोलन से कोई लेना देना नहीं किन्तु आत्मनिर्भर भारत के रोल मॉडल के लिए दयालबाग़ जैसी संस्था एक मील का पत्थर दिखाई देता है। यदि हम कोई कार्य की कल्पना करें और उस कल्पना का साकार रूप हमें यथार्थ में देखने को मिल जाए तो उससे बड़ी बात क्या हो सकती है और मोदी जी के भावनाओ का आत्मनिर्भर भारत, जहाँ भारत माँ का हृदय-स्पंदन के रूप में रोज धड़कता है।

आज़ादी के पहले से आज़ादी के बाद तक देश ही नहीं विश्व के अनेक नेता और महापुरुषों में दयालबाग़ में इसी बात का अवलोकन किया की आत्मनिर्भरता किस प्रकार से अनुशासित तरीक़े से निर्मित की जाती है । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, वी वी गिरी, महान वैज्ञानिक और राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन  जी भागवत, वर्त्तमान राज्यपाल आनंदीबेन पटेल जैसे अन्य व् अनेक महापुरुषों व् राजनीतिज्ञों ने यही नहीं वरन विश्व के अनेक प्रतिनिधि मंडलों ने दयालबाग़ आकर उसके जीवन स्वरूप को देखा।
आत्मनिर्भर भारत की कल्पना के लिए पाँच लाख जैसी जनसंख्या वाले शहरों में यदि 10 दयालबाग जैसी संस्थाएं निस्वार्थ भाव से व पूरी निष्ठा से दयालबाग़ के रोल मॉडल को अपना ले तो पूरे भारत की तस्वीर को बदलने में और देश को आत्मनिर्भर बनाने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा। स्वर्णिम भारत का यह प्रेरक मॉडल ऐसे ही तैयार नहीं हो गया, इसके पीछे अथक परिश्रम, त्याग, समर्पण भाव, लगनशीलता, संगठन और सहयोग का ऐसा जज़्बा,जो संभवतः पुरे विश्व में बिरले देखने को मिलता है । इस महान लक्ष्य को सम्पादित करने के लिए सबसे आवश्यक है निस्वार्थ भावनाओ का एक ऐसा सागर जिसकी लहरे समूचे क्षेत्र को पवित्र कर देती है, यहाँ न किसी को धन कमाने की लालसा और ना हीं किसी को निजी संपत्ति की। बस और बस सहयोग और प्रेम का ऐसा सुन्दर स्वरुप जो उसके नाम को दयालबाग़ के रूप में सार्थक करता है। यह स्थान राधास्वामी सतसंग का प्रमुख केंद्र है और राधास्वामी सतसंग दयालबाग़ का मुख्यालय है।उल्लेखनीय है की राधास्वामी मत की स्थापना सन 1861 में हुई और इस मत में जीवित संत सतगुरु की परंपरा है और वर्तमान में देश के जानें मानें वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर पी.एस. सतसंगी साहब आठवें संत सतगुरु के रूप में आत्म निर्भरता और मानव सेवा का एक अलख जगाये हुए है। और आपको जानकर अत्यधिक आश्चर्य होगा की प्रो. सतसंगी साहब द्वारा संत-सु नामक योजना प्रारम्भ की गयी जिसमे 3 माह से 5 वर्ष तक के बच्चो को खेतों की सेवा की घुट्टी बचपन से ही पिला दी जाती है जिससे बच्चे बचपन से ही सेवा के अभ्यस्त हो जाते है। हज़ारो माताएँ इन नव-निहालो को जब खेतो में लेकर सेवा करती है तो पावन माटी का स्पर्श इन बच्चों में आत्मनिर्भरता की अनूठी मिसाल जगा देता है।

राधास्वामी सतसंग दयालबाग़ की शाखाएँ सम्पूर्ण भारत ही नहीं विश्व के कोने कोने में फैली हुई है और यही सन्देश समूचे विश्व के कोने कोने में निस्वार्थ सेवा, मानव सेवा, सहयोग, संगठन और सफलता का लक्ष्य सब स्थानों पर पंहुचा रही।आज के वर्त्तमान परिपेक्ष्य में यह संस्थान और इस स्वरुप पर स्थापित अन्य संस्थान मानव सेवा के महान प्रकल्पो को पूर्ण निष्ठा भाव से विश्व को आत्मनिर्भरता का अनोखा सन्देश दे रहे।

यही नहीं आपको जानकर हैरत होगी की कोरोना जैसी महामारी जब जनवरी में चीन में प्रारम्भ हुई जिसकी भयावहता का दो माह तक विश्व को अंदाज नहीं था, किन्तु दयालबाग़ जैसी महान संस्था के वर्तमान संत सतगुरु महान वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर पी.एस. सतसंगी साहब के दिशा निर्देशानुसार जनवरी के दूसरे सप्ताह से हेलमेट, मास्क व सेनेटाइज़र का उपयोग अनिवार्य कर दिया । वहां के पैदल चलने वाले नागरिकों के लिए भी हेलमेट की अनिवार्यता कर दी गयी, जिसका सम्पूर्णता से परिपालन किया गया एवं आगरा के प्रमुख समाचार पत्र व पत्रिकाओं को इस सुरक्षित कदम को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। यही नहीं सेनेटाइज़र का उपयोग, मास्क का उपयोग और हेलमेट की अनिवार्यता सोशल डिस्टेनिंग का अनिवार्य पालन ने आज जबकि आगरा कोरोना से घिरा हुवा है, वही दयालबाग़ की इस सतर्कता ने उसे कोरोना मुक्त बना दिया। जनवरी से किये गए इन नियमो ने वहां की कोई भी सेवा को प्रभावित नहीं होने दिया और सभी मानव सेवाए जिसमे मुख्य खेतो की सेवा, भोजन सेवा, बगीचों और उद्यान की सेवा, गौ सेवा और मेडिकल और हैल्थ केयर सेवाएं, राष्ट्रीय सेवा संगठन के माध्यम से दयालबाग़ के बाहरी क्षेत्रो में साफ सफाई और सेनेटाइजेसन ।

यही नहीं दयालबाग के आस पास के ग्रामीण क्षेत्रो में भी इन सेवाओं को अंजाम दयालबाग़ के कार्यकर्ताओ और राष्ट्रीय सेवा संगठन के द्वारा कड़े  नियमो के साथ किया गया। आज यदि हम लघु पैमाने पर इस व्यवस्था को ग्राम पंचायत से लेकर शहरो में वार्ड लेवल तक रोल मॉडल के रूप में दयालबाग़ की कोरोना में किये गए ऐहतियात कदमो को उठालें तो निसंदेह सम्पूर्ण भारत को कोरोना से मुक्त कर सकते है। दयालबाग़ के प्रोफ़ेसर श्री के हंसराज द्वारा हाल ही में इस समुचित व्यवस्थाओ को अंजाम देने के इस अनुकरणीय व् प्रेरणादायी कार्यो को कोरोना से बचाव के लिए जो पेपर पब्लिश किया निश्चित तौर पर उस कार्य प्रणाली को हर भारतीय अपने जीवन प्रणाली में या सव्यंसेवी संस्थाओ और सरकार मिलकर छोटे से स्तर  से लेकर व्यापक पैमाने तक इस कार्य योजना को अपनाकर विश्व में भारत का नाम कोरोना मुक्त भारत के लिए कर सकते है।

इसके पहले की हम प्रोफ़ेसर के.हंसराज से रूबरू होकर उस कार्य प्रणाली को समझे उसके पूर्व उन 7 बातो का उल्लेख करते है जिसके कारण कोरोना जैसी महामारी को दूर किया जा सकता है।
1)  मेडिकल एंड हैल्थ केयर (यह काम ग्राम पंचायत से वार्ड स्तर पर युद्ध स्तर पर हो)
2) दयालबाग़ के बाहरी लोकल क्षेत्रो में साफ सफाई और सेनेटाइज़ेशन (यह काम नगर निगम और स्वास्थ एजेंसियो और हमें खुद मिलकर अपने अपने क्षेत्रो में करना होगा)
3) दयालबाग़ के बाहरी ग्रामीण क्षेत्र और मध्यप्रदेश के राजाबरारी क्षेत्र में साफ सफाई और सेनेटाइज़ेशन (यह काम नगरनिगम और स्वास्थ एजेंसियो और हमें खुद मिलकर अपने अपने क्षेत्रो में करना होगा)
4) राष्ट्रीय सेवा संगठन के द्वारा जागरूकता और हैल्थ कैंप ( भारत में अनेक स्व्यं सेवी संगठन है जिनके लिए एक गाइडलाइन बनाकर हर नागरिक को उनके साथ कंधे से कन्धा मिला कर नगर निगम और पंचायतो के साथ यह कार्य हो सकता है )
5) लगातार इन सेवाओं का निरिक्षण व पुनर्निरीक्षण कर आगे सेवाओं को अंजाम ( क कमिटी ऐसी भी हो जो इन कार्यो के प्रगति और बाधाओं को दूर करने में सहायक हो)
6)  डेरी और कृषि कार्यो की उन्नति के साथ मितव्ययता और अनेक सावधानिया व इन कार्यो की निरंतरता ( दूध सप्लाई चैन और सब्जी सप्लाई चैन में संक्रमण की सम्भावना को सतर्कता से रोकने के उपाय)
7) जलवायु, जल और हवा के प्रदुषण पर रोक, और पर्यावरण की दृष्टि से सम्पूर्ण निरिक्षण जिससे पर्यावरण दूषित न  हो. (मुँह पर मास्क और सेनेटाइज़ेशन की अनिवार्यता)
साथ ही प्रदुषण दूर करने हेतु हमें पेड़, पोधो को और अधिक लगाना होगा।
आज जबकि कोरोना जैसे संकट के संक्रमण काल में  भारत का मज़दूर वह मजबूर योद्धा अनेक यातनाये झेलकर पलायन करके अपने अपने घरों को जा रहा है, जहाँ बेबसी और इस अंधकार भविष्य को लेकर कि उसे अब रोज़गार मिलेगा या उसे भूखे रहने की नौबत आएगी ऐसे में दयालबाग जैसी महान संस्थाएं हैं जिन्होंने आत्मनिर्भर बनने के लिए पिछले 1 सदी से भी ज़्यादा का वक़्त बिताया हो और अपने महान प्रयासों से ही एक ऐसे असली भारत का स्वरूप प्रकट किया हो । उस प्रकार की कार्यप्रणाली बेरोजगारों को रोज़गार देने में आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक रोल मॉडल के रूप में सशक्त भूमिका निभा सकती हैं।

मोदी जी ने अपने शासन काल में जहाँ पर आधुनिक भारत के निर्माण के लिए अनेक शहरों को इस स्मार्ट सिटी में बदलने के लिए कई काम किये जिसको अमलीजामा पहनाने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, उनके अथक निरंतर प्रयास अभी भी कई शहरो को उसे मूर्त रूप दिला पाने में प्राथमिक स्तर पर ही कार्य कर रहे और अधिकांश उन कार्यो के बजट में आवंटित राशि का अनुभवहीन एजेंसियों या अन्य कारणों उपयोग ही नहीं हो पाया। वर्त्तमान परिपेक्ष्य आत्मनिर्भर भारत की प्रथम सीढ़ी ही स्मार्ट सिटी जैसे कार्यो को बाद में सफलता दिला सकती है यह ऐसा ही है जैसे प्राथमिक स्कूल के बाद हाई स्कूल और बाद में उच्च शिक्षा।
स्मार्ट सिटी उच्च शिक्षा वाला काम है जबकि आज भारत मुलभूत समस्याओं  का आधारभूत सरंचना स्थापित नहीं कर पाया वह स्मार्ट सिटी की योजनाए मूर्त रुप लेने में अत्यधिक कठनाई होगी पहले बेसिक आधारभूत सरंचना, आत्मनिर्भर भारत का प्राथमिक कार्य बाद में विकास का सीलसिला बढ़ सकता है। आत्मनिर्भर भारत के प्रयासों से  मज़दूरों को  रोज़गार देने में नई सफलता अर्जित की जा सकती है। ऐसे में जबकि भारत सरकार और प्रदेश सरकारों के पास सरकारी असीमित भूमि का ख़ज़ाना है और उस लैंड बैंकिंग को यदि आत्मनिर्भर भारत बनाने की मॉडल के रूप के लिए कार्य प्रणाली तैयार की जाए तो हम देखेंगे कि हमें कुछ समय में एक ऐसी सफलता अर्जित होगी कि हम अपने मेक इन इंडिया के कार्यक्रम को सफल बनाने में बड़ा रूप लेकर विश्व के सामने एक महान क्रांति का मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं।

दयालबाग़ की कई यूनिट पुरे भारत में सहयोग व रोजगार देने के उद्देश्य से अत्यधिक छोटे स्तर पर उत्पादन कर लगत मूल्य में ही स्वदेशी वस्तुओ का विक्रय करती है, जिसके लिए संस्था से जुड़े लोग सेवाभाव से ऐसे प्रकल्पो को पूर्ण करते है ।  भारत में अलग अलग स्थानों पर जो कच्ची सामग्री जहाँ जिन शहरो में सस्ती है उनसे विभिन्न प्रकार के उत्पादन करके बिना मुनाफे के आम लोगो व् सतसंग से जुड़े लोगो की आवश्यकता पूर्ण करके आत्मनिर्भरता का शंखनाद करती है ।ऐसे में मोदी जी के सपने को पूर्ण करने में राज्य सरकार जी जान से जुटकर जिन स्थानों में जो कच्ची सामग्री उपलब्ध है उन स्थानों पर कुटीर, व छोटे उद्योग लगाकर वह बनने वाली सामग्री पुरे देश की जरूरतों को धीरे धीरे पूर्ण करने लगे तो मेक इन इंडिया का स्वप्न सच हो सकता है।

चीन में आपने देखा होगा या सुना होगा की वह एक शहर में एक जैसे प्रोडक्ट की अनगिनित फैक्ट्रिया है उसका कारण है जहाँ जो कच्ची सामग्री सस्ती हो उसके प्रोडक्ट वही बनाकर बेचे जाये । आज चीन पुरे विश्व में इन्ही मुख्य कारणों से विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक राष्ट्र बना हुवा है। आपको जानकार हैरत होगी की 1943 में चीन का एक प्रतिनिधि मंडल शिक्षा के प्रयासों को जानने के लिए दयालबाग़ आया और वह की कार्य प्रणाली को उन्होंने समझा। आज के वर्त्तमान हालातो में हम विकास के और आत्मनिर्भर मामलो में चीन से कोसों दूर है । इस सच्चाई को मानने में हमें संकोच न करके उनसे यह सीखा जाना चाहिए की उन्होंने आत्मनिर्भरता के लिए किस प्रकार की प्रणाली अपनायी, यद्यपि आज के हालातो में जबकि चीन ने पुरे विश्व को मौत के मुँह में ढकेल दिया और इसी के कारण हमारे आत्मनिर्भरता वाले विचारो को बल मिला उनसे सिखने की बात करना बेमानी होगी, किन्तु उस कटु सत्य को झुटलाया भी नहीं जा सकता, आज सबसे बड़ी मुश्किल है, इस प्रकार की कल्पनाओ को साकार करने में सरकारी तंत्र का भ्रष्टाचार व् असहयोग, जनता बेचारी जिसमें कार्य करने का जज्बा है वह दफ्तरों के चक्कर लगा लगा कर सरकार द्वारा लायी गयी योजनाओ का फायदा ही नहीं ले पाती । क्योकि राजतन्त्र व् सरकारी महकमों में एक ऐसा कुनबा बैठा है जो हजारो लाखो में तनखव्हा पाता है पर कार्य करना नहीं चाहता या काम करने वाले लोगो को इतना निरुत्साह करता है, की आदमी थक कर बढ़ते कदम खींच लेता है । यही हाल बैंको का है, सरकार कहती 59 मिनट में लोन, जनता 59 दिनों तक बैंक के चक्कर लगा लगाकर थक जाती लोन मिलना तो दूर की बात कागजो में ही हजारो रुपया लग जाता है।
सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ की योजना का जो सपना मोदी सरकार ने अपने नेक इरादों से जनता की राहत व आत्मनिर्भरता के प्रथम पायदान के रूप में प्रस्तुत किया, उसकी हवा इन बेंको और सरकारी महकमों में बैठे ऐसे अधिकारी व कर्मचारी जनता को परेशान कर कर के उस पर पलीता फेर देंगे, सिंगल विंडो प्रणाली या पारदर्शित प्रणाली या अत्यधिक सरलीकरण जैसी योजनाए जो उद्योगों को बड़ा सकती है, किन्तु भ्रष्टाचार व् अकर्मण्यता इसके दो घातक बिंदु है। जिसके कारण सरकारी योजनाए कागजो तक ही सिमित रहकर गरीब को और गरीब बनाकर आत्महत्या जैसे कदमो के लिए उकसाती है। मोदी सरकार ने बिना ग्यारंटी के लोन की उपलब्धता बताई, ऐसा पहले भी था, किन्तु मैं खुद इस बात का साक्षी हूँ की मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना में जिसमे ग्यारंटी की आवश्यकता नहीं थी, ग्यारंटी देनी पड़ी और बिना ग्यारंटी के लोन नहीं मिल पाया,  व आर्थिक संकट के समय में बैंक इंटरप्रेन्योर को आत्मबल नहीं देती और न कोई छूट बल्कि दबाव और मानसिक कष्ट देकर अनेक युवा उद्यमियों को मोत के मुँह में धकेलती है। आपने आये दिन समाचार पत्रों में छोटे छोटे लोन धारको व कृषको को आत्महत्या जैसे बड़े कदम उठाते देखा होगा यह इस प्रकार के बैंको द्वारा मानसिक प्रताड़नाओं से त्रस्त भारत की खौफनाक तस्वीर है।जिसमे व्यापार में शिथिलता या आर्थिक मंदी से उपजे संकटो में बैंको द्वारा राहत न दी जाकर अनेक लोगो को आत्महत्या जैसे बड़े कदम उठाने को मजबूर करती है, वही हजारो करोडो के लोन लेकर कई उद्योगपति सम्पन्नता के बावजूद दिवालिया घोषित होकर या चुना लगाकर विदेश भाग जाते, और छोटे छोटे व्यपारी छोटे छोटे कर्ज में तनावों में जीवन खो देते है, इस प्रकार की अनेक विसंगतिया भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अवरोध पैदा करती है और हम तभी इस महत्वपूर्ण विषय पर तरक्की कर सकते है जब इस प्रकार के अनेक अवरोध दूर होकर अनेक होनहार लोगो को जो कार्य करना चाहते है, उन्हें मोटिवेशन, उनका हौसला अफजाई कर नए भारत के निर्माण में  ऐसे एंटरप्रेन्योर को बढ़ावा देकर चीन जैसे वृहद निर्यातक देश से टक्कर ले सकते है.....

निसंदेह सम्पूर्ण भारत में और विदेशो में भी दयालबाग़ जैसे संसथान देश सेवा में आत्मनिर्भर बनकर आत्मा को परमात्मा से संतोष भाव लिए मिला रहे किन्तु आत्मनिर्भर केवल स्लोगन नहीं उस कार्य के लिए अथक परिश्रम और बलिदान की लम्बी गाथा है। जिसके लिए हजारो लाखो समर्पित निस्वार्थ भाव से जिन्हे केवल और केवल इस बात का आश्वाशन मिल जाए की उन कार्यकर्ताओ का साधारणतः बहुत आसानी से घर गृहस्थी चल जाएगी। वे जो भी निष्ठा से कार्य करेंगे उसके बदले उन्हें अधिक नहीं पर कम भी नहीं, इतना वेतन उत्पादन कर दे सकते है जिससे संतोषप्रद जीवन चल सके। उत्तम गुणवत्ता वाली सामग्री को जब उत्पादित करने का महान लक्ष्य होगा और नेक सरकार उस उत्पादन को हाथो हाथ क्रय कर लेगी या उस प्रोडक्ट के ग्राहक उपलब्ध करा देगी, तो आत्मनिर्भर भारत के लिए यह एक स्वर्णिम अध्याय होगा। एक बात और वर्त्तमान में जो दयालबाग़ की इकाईयां उत्पादन करती है उनकी प्रदर्शनी जब एक या दो दिवस की वर्षभर में एक बार अलग-अलग स्थानों पर लगायी जाती है तो वह उत्पादन मिनटों में बिक जाता है, और जो उत्पादन दयालबाग़ की इकाइयां करती उसे लागत मूल्य पर ही विक्रय किया जाता है, इस कारण से उसकी डिमांड सदा बनी रहती है ।आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यकता है !

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
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