Friday, May 22, 2020

सत्संग के उपदेश






**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 सत्संग के उपदेश-

 भाग 2- कल से आगे:-

अब हम मुतलाशियों की दूसरी घटना का जिक्र करते हैं:-

दूसरी घटना यह है कि आमतौर पर यह मशहूर है कि एक गुरु छोड़कर दूसरा गुरु धारण करना पाप है। मसलन् कहा जाता है कि सिक्ख गुरुओं का वाक्य है कि "एक छोड़ दूजा गहे, डूबे से बंजारिया" इसलिए सिक्ख गुरु साहिबान या दूसरे पैरवों की टेक रखते हुए वे कैसे राधास्वामी दयाल के शरण में आवे। यह कठिनाई भी अनसमझता की बुनियाद पर कायम है। इसमें शक नहीं कि जब किसी को एक सच्चे गुरु मिल गए तो उसके लिए मुनासिब है कि अपनी तवज्जु चारों तरफ से हटाकर उनकी आज्ञा का पालन करें और जो साधन की युक्तियों में बतलावें पूरा भरोसा रख कर उनकी कमाई करें। लेकिन अगर किसी को महज अधूरे गुरु मिले हों यानी उसने ऐसे शख्स की शरण इख्तियार की हो जिसका मालिक से मेल नहीं है या अगर किसी को पूरे गुरु मिले हो लेकिन अब मौजूद ना हो और उसका अभी काम पूरा न हुआ तो इन दोनों सूरतों में शौकीन प्रमार्थियों के लिए मुनासिब है कि पूरे व जिंदा गुरु की तलाश करें और मिल जाने पर उनके चरणों में पूरी श्रद्धा व प्रतीति लावे। वाजह हो कि गुरुपदवी सिर्फ उन महापुरुषों की है जिन्होंने सच्चे मालिक से वस्ल हासिल किया है जो मालिक के दर्शन के तलबगार जीवों को रास्ता दिखलाने ही की गरज से संसार में रहते हैं । ऐसे महापुरुषों की शरण रस्म की अदायगी के तौर पर इख्तियार नही की जाती बल्कि मंशा यह रहती है कि उनसे हिदायत व मदद पाकर शौकीन परमार्थी जीते जी मंजिले मकसूद पर पहुँचे मानी खुद उन की सी गति हासिल करें। अगर किसी ने अधूरे गुरु की शरण हासिल की तो न तो वह गुरु कहलाने का अधिकारी है और न उनको गुरु दर्जा हासिल है इसलिए ऐसे शख्स कु शरण लेना गुरु की शरण लेना नहीं समझा जा सकता और ऐसी सूरत में परमार्थी के लिये पूरी इजाजत है कि पूरे सतगुरु के मिल जाने पर उनकी शरण इख्तियार करें। इसी तरह एक गुरु के शरीर त्यागने पर( अगर उस वक्त तक उसका काम पूरा नहीं बना है) शौकीन परमार्थी को पूरी इजाजत है कि दूसरे जिंदा गुरू की नये  सिरे से तलाश करें। पूरे गुरु सब एक ही होते हैं उनमें सिर्फ देहस्वरुप का फर्क रहता है। रूहानी जौहर व गति उनकी एक ही होती है इसलिए एक पूरे गुरु के गुप्त हो जाने पर दूसरे पूरे गुरु की शरण लेना नाममात्र के लिए दूसरे गुरु के शरण लेना है। क्योंकि अंतरी चैतन्य यानी रूहानी संयोग एक ही रहता है । इसलिए इस सूरत में भी" एक छोड़ दूजा गहे" वाला एतराज शौकीन परमार्थी पर आयद नहीं होता ।

 क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


 राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी।।।।।।।।
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