Saturday, May 23, 2020

मिश्रित प्रसंग बचन उपदेश और डायरी






प्रस्तुति - सपन कुमार

**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

रोजाना वाकियात- 3 अक्टूबर 1932-

सोमवार

:-      छुट्टी का दिन है लेकिन बचा हुआ काम ज्यादा था इसलिए सुबह 10:30 बजे तक काम किया। सत्संग के उपदेश भाग तीसरा छट कर तैयार हो गया। आज टाइटल पेज पास किया गया।  दो नये क्लॉक तैयार होकर पूरे पेश हुए।  अभी कुछ कसर है। वैसे काम देते हैं लेकिन पास करने के काबिल नहीं है। वजह यह है कि हिंदुस्तान पर ढूंढ मारा कहीं से बढ़िया स्प्रिंग प्राप्त नहीं हुए। मजबूरन  बाहर आर्डर भेजा गया। कोलकाता से खरीद कर बढ़िया से बढ़िया स्प्रिंग इस्तेमाल किए हैं लेकिन उनमें दम नहीं है। आठ-दस दिन के अंदर यूरोप से स्प्रिंग आ जाएंगे और सब कसर दूर हो जाएगी।                                         रात के सत्संग में सच्ची भक्ति के मुताल्लिकक भक्ति करना बड़ा कठिन है। बिला आपा तजे भक्ति करना बडा कठिन है।बिला आपा तजे भक्ती बन ही नहीं सकती और कोई अपना आपा क्यों तजे?   हिंदुस्तान में जो पॉलिटिकल लहर चल रही है उसका नतीजा यह हो रहा है कि हर शख्स किसी न किसी किस्म की कशमकश में लगा है।  म्युनिसिपल बोर्ड की मेंम्बरी, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के मेंबरी,इन बोर्डो की सब कमेटियों की मेंबरी , प्रोविंशियल काउंसिलो की मेंबरी, लेजिस्लेटिव असेंबली की मेंबरी गर्जकि बीसों घुड़दौड़ के मैदान है । फिर सत्संगी आपा तजने के लिए क्यों आसानी से रजामंद हो ? सतसंगीयो को मशवरा दिया जाता है कि अगर वह अपने को जेर डालकर राधास्वामी दयाल की हिदायत पर अमल करेंगे तो एक दिन आएगा कि दुनिया उनकी कुर्बानियों के दाद देगी और सत्संग के नक्शे पद चिन्हों पर चलना गर्व का कारण समझेगी । गौर का मुकाम है कि यह कभी नहीं होता कि किसी जगह सब के सब आदमी एकदम बीमार हो जाए , या मर जाए, या भूखे रहने के लिए मजबूर हो । आबादी का कोई ना कोउ  हिस्सा बकिया लोगों से बेहतर हालात में रहता है । और संसार चक्र का यह हिसाब है कि कभी कोई जमात दबी जा रही है कभी कोई।इसलिये अक्लमंदी इसी में है कि सब जमाअते मिलकर जिंदगी बसर करें। जिस जमाअत के दबे जाने की बारी को दूसरे लोग उसकी इमदाद करें। इस तरह मुल्क भर का सृष्टि नियमों से नमूदार होने वाले दुखों से बहुत कुछ बचाव  हो सकता है लेकिन सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व और हिंदुस्तानियों के लिए मिलकर काम करना लगभग नामुमकिन बना दिया है और अगर मूल्क के अंदर वातावरण ना बदला तो मिलकर काम करना कतई नामुमकिन हो जावेगा । सत्संगी भाइयों को सत्संग के सिद्धांतों की उस दिन खूब कद्र आवेगी।     

                             

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-सत्संग के उपदेश -भाग 2-( 50 )-

【सेवा की जरूरत 】:-

दुनिया में कोई ऐसी जमाअत या मुल्क ना मिलेगा जिसके सभी मेंबर या वाशिंदे  अपने भुजबल से अपनी दुनयवी जरूरियात पूरी करते हों बल्कि देखने में यही आता है कि ज्यादा तादाद, चंद आदमियों की मेहनत के आसरे जिंदगी बसर करती है ।आर्थिक विद्या उसूलों के माहिर बखूबी जानते हैं कि दोनों पैदा करने वाले वे ही लोग होते हैं जो जिस्मानी मेहनत या अपनी अक्ल को खर्च में लाकर जमीन से कच्ची चीजों और उनसे  बेशकीमत व उपयोगी वस्तुएं तैयार करते हैं । चुनांचे सब के सब काश्तकार,खानों में काम करने वाले , जंगल लगाने वाले जो मेहनत करके अनाज ,फल ,फूल, कपास ,लकड़ी ,लोहा, कोयला और गोंद वगैरह कच्चा माल पैदा करते हैं व और भी सूत कातने वाले, कपड़ा बुनने वाले, रबड बनाने वाले, लोहे वगैरह की चीजें बनाने वाले सबके सब दौलत पैदा करने वाले मेम्बरान सोसाइटी में शुमार जाते हैं ।इसके अलावा ऐसे लोग हैं जो खुद कच्ची या तैयारशुदा चीजें तो पैदा नहीं करते लेकिन चीजें पैदा करने वालों के सहायक बनकर काम करते हैं । मसलन, बढई व लौहार,जो काश्तकारों के लिए हल व दूसरे औजार तैयार करते हैं और कपड़ा रँगने व धोने वाले ,फसल काटने वाले और मवेशी चराने वाले वगैरा-वगैरा ।

क्रमशः 

   🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र- भाग 1-


कल का शेष-( 8 )


जो इस तरह अपनी हालत की परख करने से मालूम पड़े कि संसार और संसारियों की तरफ से तबीयत किसी कदर दिन दिन हटती जाती है और अंतर अभ्यास में और सत्संग और पानी के पाठ में ज्यादा लगती जाती है और इधर का रस ज्यादा आनंद देता है और संसार के भोग दिन दिन किसी कदर फीके लगते मालूम होते हैं, तो यही सबूत इस बात का है कि अंतर का रस भारी और पायदार है और बाहर का भोगों का रस हल्का और फीका और नाशवान् है । फिर मुनासिब है कि जिस कदर बने इसी अभ्यास को आहिसता आहिसता बढ़ाता जावे और संसार की मोहब्बत आहिस्ता  आहिस्ता कम करता जावे, तो रफ्ता रफ्ता एक दिन काम दुरुस्त बन जावेगा और इसी अभ्यास से एक दिन सच्ची मुक्ति और परम आनंद प्राप्त हो जावेगा।।             


 (9) मालूम होवे कि ऊपर जो कुछ लिखा है यह सच्चे अभ्यासी का हाल है, यानी जिसके दिल में निर्मल चाह सच्चे मालिक के मिलने और अपने जीव का कल्याण करने की है और कोई दूसरी इच्छा शक्ति सिद्धि शक्ति की या मान बड़ाई हासिल करने की नहीं है । और संसार के भोगों की फजूल चाह जिसने सचौटी के साथ दूर करी है यह काम करता जाता है, उसी की हालत अभ्यास करके आहिस्ता आहिस्ता सहायता बदलती जावेगी और बुरे कामों से नफरत और नेक कामों से रग्बत होती जाएगी और उसको अभ्यास की हालत में यह भी मालूम हो जाएगा कि इसी जुगत की कमाई से तन मन और इंद्रियों से न्यारा होना मुमकिन है। और फिर वही जीव संतो के वचन की परीक्षा अपने अंतर में बखूबी करता जाने का और दिन दिन राधास्वामी दयाल की दया से प्रीति और प्रतीति उनके चरणों में बढ़ाकर 1 दिन अपना काम पूरा बना लेवेगा।और जो कोई अपने मन में और इंद्रियों  में आसक्त है और संसार के पदार्थों की कदर जोर की है और संसार के और उसको दूर या कम नहीं कर सकते, उनकी हालत जल्द नहीं बदलेगी । पर जो सत्संग और अभ्यास करते रहेंगे तो अव्वल उनके अंतर में सफाई और फिर आए आहिस्ता आहिस्ता चढ़ाई होती जाएगी और फिर हालत भी बदलती जावेगी।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
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