Monday, May 18, 2020

विभिन्न प्रसंग सत्संग वचन




Radhasoami 🙏


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 रोजाना वाक्यात- 29 सितंबर 1932-

बृहस्पतिवार :-डेरी के लिए एक हॉल्सटीन सांड खरीदने की मंजूरी दे दी गई थी ।अढाई हजार रुपए कीमत तय हुई है। लेकिन अब मुनासिब मालूम होता है कि एक उस नस्ल की गाय भी मंगाई जाए। इसलिए एक गर्भवती गाय खरीदने की इजाजत दे दी गई। गायों की नस्ल बेहतर बनाने पर जितना भी हमारे रुपया खर्च हो सफल होगा । बहुत ही कम लोगों की तवज्जो इस जानिब आकृष्ट है। काश हमारी सभा को मनचाही जमीन व पानी मिल जाए और मुल्क के लिए दूध और गायों के लिए उचित आराम का सवाल हल करने की सूरत निकल आये। इस वक्त तो चारों तरफ मुश्किलें ही मुश्किलें नजर आती हैं। और नाकामयाबी अपनी भयानक शक्ल दिखला कर डरा रही है। ऐसे घोर वक्त में मालिक की दया का सहारा खूब काम आता है।अगर कोई शख्स अनेक रस्सियाँ पकड़ कर लटक रहा हो तो उसके दिल में किसी खास रस्सी के लिये आदर नहीं होती । लेकिन अगर एक एक करके रस्सियाँ टूटने लगे और आखिर में सिर्फ एक बाकी रह जाए और वह इस काबिल हो कि तनहा उसका बहुत बर्दाश्त कर सके तो फिर उसके दिल में उस खास रस्सी के लिए वह बवक्त कायम होती है । यही हाल हमारे मन का है। जब तक मन को बहुत से आसरे हासिल रहते है वह मालिक की दया के आसरे की तनिक भी परवाह नहीं करता लेकिन दूसरे सब आसरे टूट जाने पर वह मालिक की दया के आसरे की तनिक भी परवाह नही लेकिन दूसरे सब आहरे टूट जाने पर उसको मालिक की दया के आसरे की कद्र व शांती मालूम हो जाती है।

क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**




 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 सत्संग के उपदेश- भाग 2-( 49)-

【 जिज्ञासु की दो कठिनाइयाँ। 】:- 


 बहुत से ऐसे लोग हैं जो राधास्वामीमत में शरीक नहीं है लेकिन उनके दिल में संतवचन व नीज हुजूर राधास्वामी दयाल की तालीम के लिए कमाल इज्जत व प्रेम मौजूद है। दरियाफ्त करने से मालूम हुआ कि ये प्रेमीजन ऐसी कठिनाइयों में फंसे हैं जो बआसानी दूर हो सकती थी लेकिन क्योंकि उन्हें कोई समझाने वाला ना मिला इसलिए भी हुजूर राधास्वामी दयाल की तालीम के लाभ से महरूम रहे ।यहां पर उनकी कठिनाइयों के मुतअल्लिक़ मुनासिबत  मश्वरा दिया जाता है:- अव्वल मुश्किल यह है कि लोग साधन की युक्तियाँ सीखकर कर अमल करने के लिए तो दिल से ख्वाहिशमंद है लेकिन किसी खास फिक्रों में शरीक होना या किसी फिक्रे के अनुयायी कहलाना पसंद नहीं करते यानी वे चाहते हैं कि उन्हे साधन की युक्तियां इस तरीके से बतला दी जावे क्यों नहीं राधास्वामी सत्संग में शरीक होना या राधास्वामीमत का अनुयायी कहलाना ना पड़े। जाहिरा वजह इस ख्वाहिश की मालूम होती है कि क्योंकि पैरावान राधास्वामीमत की तादाद अभी कम है और मूर्ख व स्वार्थी लोगों ने राधास्वामीमत की निस्बत अनाप-शनाप बातें मशहूर करके किसी कदर बदनामी के सूरत पैदा कर रखी है इसलिए उनका दिल ख्वामख्वाह की पूछताछ में पढडने से परहेज करता है ।

क्रमशः           

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


 **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र
-भाग-1- कल से आगे:-

जो सुरत इस तरफ से जानेमन और इंद्री अध्ययन और लोगों की तरफ से चित्त को हटाकर अंतर में अपने निज रुप की तरफ, जो सुषुप्ति अवस्था या ने गहरी नींद की हालत के परे है, और फिर उस निज रुप के भंडार की तरफ , जो की माया की हद के पार है और वही सच्चे मालिक और सर्व रचना के पिता का धाम है, शौक के साथ तवज्जो करें तो उसको अपने निज रूप का आनंद और सुख हासिल होने लगे दुनिया और देह के दुख सुख से निवृत्ति यानी अलहदगी , जिसको मुक्ति कहते हैं फौरन हासिल होती हुई मालूम होने लगे ।।     (४)  सुरति यानी रुह और उसका भंडार सर्व आनंद और सुख और चैतन्य शक्ति का खजाना है और उसी की धारों से जब वह इंद्रियों के स्थान पर आकर ठहरती है, हर एक इंद्री के भोग का रस मालूम होता है ।और जो वह धार ना आवे, तो कुछ मजा या रस या स्वाद मालूम नहीं हो सकता है ।।      यह बात हालत स्वपन के बिचारने से अच्छी तरह साबित हो सकती है ,क्योंकि उस हालत में रुह यानी सुरत सब इंद्रियों की कार्रवाई उसी तौर पर ,जैसे कि जागृत अवस्था में करती है, बदस्तूर करती है और उसी तरह का आनंद और स्वाद हर एक इंद्री की कार्रवाई में मालूम होता है, जैसा की हालत जाग्रत में इससे साफ जाहिर होता है कि यह सब रस और सुख और आनंद रूह यानी सुरत की धार में है और बाहर के पदार्थ सिर्फ एक जरिया उस धार को इंद्री के मुकाम पर अंदर से खींचकर लाने के हैं , यानी आदमी के अंतर में सब रस और स्वाद और आनंद हर तरह का और ताकत उसके भोगने की मौजूद है ।।                                         विचारविन्  आदमी इन सब ऊपर की लिखी हुई बातों को यानी दुनिया के हाल और अपनी हालतो को गौर के साथ नजर करने से आप समझ सकता है और उनसे यह नतीजा निकाल सकता है कि जो कोई पूर्ण सुख के भंडार में पहुंचना चाहे,  उसको मुनासिब  है कि अपने अंतर में भेद लेकर तवज्जो करें और चलने की जुगत दरियाफ्त करके आँख के मुकाम से ,जहां की इस सुरत की खास बैठक जागृत की हालत में है, चलना शुरू करें तो एक दिन अपने निज रुप का दर्शन कर सकता है और वहां से निज भंडार में, जहाँ से सब रुहें यानी सुरते आई है, पहुँचकर परम आनंद को प्राप्त हो सकता है।.     

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

राधास्वामी
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राधास्वामी

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