Friday, May 22, 2020

प्रेमपत्र परम गुरू हुजूर महाराज साहब


**परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र -भाग 1 - कल से आगे-( 5)


अक्लमंद आदमी जो इस बात को गौर से समझे वह फौरन यह नतीजा निकाल सकता है कि जब की सर्व रस और मजे और आनंद सुरत की धारों में है और वह सब मजे, रस और आनंद अंतर में हर एक जीव के मौजूद है, जैसा कि स्वप्न अवस्था के हाल को विचार करके मालूम हो सकता है, तो फिर हर एक जीव को चाहिए कि जहां तक हो सके अपने अंतर में उन मजों और रसों को आसानी से हासिल करने की जुगत दरयाफ्त करके थोड़ी बहुत उसकी कमाई शुरू कर देंगे तो आहिस्ता आहिस्ता जरूर एक रोज उस स्थान पर पहुंचना मुमकिन है जहां कि सुरत की बैठक है और जहाँ पहुंचकर उस सुरत की धार से (जो सब धारों का, जो इंद्रियों के द्वारों से जारी होती है, खजाना है) मिलकर उसका आनंद (जिसमें सर्व इंद्रियों के मजे शामिल हैं )ले सकता है ।।                             


 (6 ) यह बात कुछ नई और ज्यादा मुश्किल मालूम नहीं होती क्योंकि बहुत से आदमी सिर्फ चार-पांच इंद्रियों के रस और स्वाद के हासिल करने के लिए रात दिन मेहनत करते हैं और फिर भी वह रस पूरे पूरे जैसा कि मन चाहता है इसलिए नहीं होते और इन रसों  के हासिल करने के लिए उनकी सुरत की धार चार पांच द्वारों पर बैठकर अपनी ताकत को बाहरमुख भागों में खर्च करती है। और जिनको सर्व इंद्रियों के रस हासिल है उनकी सुरत की धार का बर्ताव नौ द्वारों में हर रोज रहता है यानी इन द्वारों के वसीले से बाहर की तरफ दुनिया भोगों और सामान में वह धारे हर रोज बहती रहती है यानी खर्च होती रहती है। फिर दसवें द्वार की तरफ चलने के लिए ,जो अंदर दिमाग यानी सिर के गुप्त है और जहाँ से शब्द की धार रुह यानी सुरत के स्थान तक और वहां से नीचे की तरफ हर वक्त जारी है और तमाम बदन को चैतन्य और ताजा करती रहती है, किस कदर तवज्जह हर एक आदमी को करनी जरूरी और मुनासिब मालूम होती है ।जो इस कदर मेहनत न बने जैसे कि दुनियाँ के भोगों के हासिल करने के लिए हर कोई कर रहा है , तो थोड़ी सी मेहनत यानी दो-तीन घंटे बाद अभ्यी हर रोज करना अपने रुह यानी जीव के फायदे और कल्याण के वास्ते जरूरी बल्कि हमारा कर्तव्य मालूम होता है ।

क्रमशः         

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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