Thursday, May 14, 2020

परम गुरू हुजूर साहबजी महाराज / रोजानावाकियात





**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

रोजाना वाकियात-

 6 सितंबर 1932- मंगलवार:-

सुबह होते ही मद्रास स्टेशन आया। ठहराव के लिये विश्राम स्थल पर पहुचे। सतसंगी भाई जमा थे।  परंपराअनुसार सुबह का सत्संग हुआ ।और फैसला किया गया कि शाम के वक्त मुक्तावली से "स्वामी सेवक संवाद" के अर्थ बयान किये जावें।  शाम के सत्संग में तीन प्रश्नों के उत्तरों का तात्पर्य अंग्रेजी जबान में बयान किया गया। 2 मद्रासी भाई उसका तेलुगु में अनुवाद करते रहे ।और एक भाई मुक्तावली से तेलगु इबारत का पाठ करता रहा है।  इस सम्वाद में राधास्वामी मत की कुल  तालीम का निचोड़ मौजूद है।  और ऐसे आसान शैली में बयान हुआ कि मुतलाशियों को बआसानी समझ में आ सकता है।।                         
थोड़ी देर बाद सेठ चमरिया भी कलकत्ता से आ गए और उनसे फिल्म इंडस्ट्रीज के मुतअल्लिक़ बहुत सी बातें कि। उन्होंने बतलाया कि उन्होंने कुल सिनेमा हाउसेज की 1/4  आमदनी सतसंग सभा के नाम उत्सर्ग कर दी है। अब सभा दिल खोलकर टेक्निकल तालीम के लिए इंतजाम करें और टेक्निकल कॉलेज दयालबाग को तरक्की दे। मैंने शुक्रिया अदा किया और कहा 4-6 माह आमदनी का हाल देख कर फैसला करेंगे कि हमें उसके इस्तेमाल के लिए क्या करना चाहिए। एक जरूरत तो नहर की है दूसरे सूत कातने के कारखाने की।

और तीसरी अनुबंध के अनुसार 6 लाख यूनिट बिजली खर्च में लाने की। यह जरूरतेदूर होने पर  कॉलेज की तरक्की के मुतअल्लिक़ कोई ख्याल उठाया जा सकता है। उनकी राय यही हुई कि अव्वल कारखानाजात को तरक्की दी जाय। ऐसा करने से आमदनी भी बढ़ेगी और बिजली के इस्तेमाल के लिए भी सूरत निकल आवेगी । आखिर में मैंने समझाया कि जब तक आपका दिमाग ठंडा और दिल साफ रहेगा आपको अपने काम में हर तरह की सहूलियत रहेगी। और जिस दिन दिल व दिमाग में फर्क आया आपके लिये यह सब काम परेशानी की सूरत पैदा करेगा।।                     

 शाम के वक्त चंद मिनटों के लिए सिनेमा हाउस देखने गए। लैला मजनूँ फिल्म दिखाई जा रही थी। मालूम हुआ कि इस फिल्म ने लोगों के दिलों को जीत लिया है। चौथी मर्तबा यह फिल्म मद्रास में आई है । 6 दिन से चल रही है। दिन में दो दफा दिखलाई जाती है लेकिन तो भी हाल भरा हुआ है। क्या फिल्मों के जरिए इस मुल्क में नेक व लाभकारी ख्यालात फैलाकर नौजवानों के दिलों में प्रकट परिवर्तन नहीं कर सकते? जरूर कर सकते हैं।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र

- भाग-1-( 18) -

【 जो लोग कि सिवाय संत मत के अभ्यास के और और काम कर रहे है,उनको क्या फायदा होगा?】

-(1) जो परमार्थी की कार्यवाही आजकल दुनिया में जारी है वह या तो (१) कर्मकांड या दान पुण्य

 (२) तीरथ और मूरत और निशानों की पूजा

(३) ब्रत

 (४)  नाम का जाप

 (५) हठ योग

(६) प्राणायाम

 (७) ध्यान

(८) मुद्रा की साधना

 (९) वाचक ज्ञान

 (१०) या पोथी और ग्रंथ का पाठ करना और मन से अस्तुति गाना और प्रार्थना करना वगैरह है।

इन साधनों से संतों के बचध के मुआफिअ जीव के सच्चे उद्धार के सूरत नजर नहीं आती, क्योंकि इन कामों में मालिक के चरणो का प्रेम और उसके दर्शन की चाह बिल्कुल नहीं पाई जाती। अब हर एक का हाल थोड़ा सा लिखा जाता है।।                      (१)-【 कर्मकांड और दान पुण्य 】-जो जीव इध कामों में बरत रहे हैं, चाहे जिस मत में होवें, उनका मतलब इन कामों के करने से या तो इस दुनियाँ के सुख और मान बड़ाई, धन और संतान की प्राप्ति और वृद्धि का है या बाद मरने के स्वर्ग या बैकुंठ या बहिश्त में सुख भोगने का।

इनके मत में ना तो सच्चे मालिक का खोज और पता है उसके मिलने की जुगत का जिक्र है। जितने काम कि यह लोग करते हैं सब बाहरमुखी हैं और उनका सिलसिला अंतर में सूरत और शब्द की धार के साथ बिल्कुल नहीं। इस सबब से इन कामों में जीव का सच्चा उद्धार नहीं हो सकता।

 क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

सत्संग के उपदेश- भाग 2-( 42)-

【 असली पवित्रता क्या है?】:-

आपने पवित्र, पवित्रता, शुद्ध ,शुद्धता Holy Sacred  वगैरह अल्फाज हजारों मौकों पर इस्तेमाल किए होंगे और इस्तेमाल होते सुने होंगे लेकिन गालिबन आपको कभी यह इत्तेफाक न हुआ होगा कि यह तहकीक करें कि पवित्रता किस चीज या वस्तु का नाम है कोई चीज पवित्र क्यों कही जाती है?  मिसाल के तौर पर देखिए-- गंगाजल पवित्र कहा जाता है और वजह यह बतलाई जाती है गंगा जी स्वर्ग से उतरकर संसार में आई है इसलिए पवित्र है और इसलिए गंगाजल भी पवित्र है। लेकिन और भी बहुत सी नदियां , जो स्वर्ग से नहीं उतरी, पवित्र मानी जाती है। इस पर जवाब दिया जाता है कि वे सब नदियाँ, जिनका जिक्र प्राचीन शास्त्रों में है, बावजह इसके कि पूर्व काल में ऋषियों व बुजुर्गो ने उनके किनारे विश्राम किया,पवित्र मानी जाती है ।लेकिन ऐसी भी बहुत सी नदियां हैं जिनका शास्त्रों में कही कोई जिक्र नहीं लेकिन फिर भी पवित्र मानी जाती है। चुनांचे 'राजाबरारी' में काजल व गंजाल नदियों के संगम का मुकाम पवित्र समझा जाता है और सूर्य व चंद्र ग्रहण के मौको पर और खास खास तिधियों पर हजारों लोग अपने शहर या कस्बे के करीब नदियों में पवित्र्ता हासिल कलने के लिये स्नान करते हैं।

 क्रमश 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
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राधास्वामी। औ

राधास्वामी 

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