Friday, May 15, 2020

आज 15/05 को शाम के सत्संग में पढ़ा गया पाठ - बचन





राधास्वामी!!
 15-05 -2020 -                                     आज शाम के सत्संग में पढे गये पाठ-               
  (1)                                                         

1) दरस देव प्यारे , अब क्यों देर लगइयाँ हो।।टेक।। ( प्रेमबानी- भाग -3, शब्द- 1( प्रेम लहर भाग चौथा), पृष्ठ संख्या 255)                         

  (2)  कंठ करी कुछ साखियाँ पढे ज्ञान के ग्रंथ। जो इतने ज्ञानी बने  सुगवा बड़ा महंत ।।(प्रेमबिलास- शब्द 113- पुष्ट संख्या 169 )                                                     

 (3 ) सत्संग के उपदेश -भाग तीसरा- कल से आगे।।               

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

राधास्वामी!!                                               

15-05- 2020 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे -                                 

   (138) अगर कोई शख्स परमार्थ के रास्ते पर कदम बढ़ाया चाहता है तो उसे संतों का बतलाया हुआ ढंग इख्तियार करना होगा और वह ढंग सच्चे गुरु की शरण लेकर उनके हमराह इस रास्ते पर चलना है।

शौकीन परमार्थी के लिए मुनासिब है कि अपने तई सतगुरु की आज्ञा के अनुसार चलावे और अपने मन में सतगुरु के लिए ऐसी भक्ति व प्रीति पैदा करें कि उनकी रगबतें व नफरतें उसकी रगबतें व नफरतें हो जावें।

 उसे चाहिए कि सतगुरू की भली प्रकार सेवा करें ,उनके सत्संग में रहे और कभी अपने मन को बैखौफ हो कर बरतने की इजाजत न दें । अगर दुनिया के लोग उसकी इस हालत पर हँसी करें तो उसकी परवा न की जावे। उन लोगों को मालूम नहीं है कि इस रियाजत व मन की तरबियत का क्या फल होता है।

याद रखना चाहिए कि मन का बस में लाना निहायत मुश्किल है । इसको बस में लाने की सबसे उम्दा तरकीब यही है कि सच्चे गुरु की शरण इख्तियार की जावे। उनका साया पडने से यह मन अपनी चंचलता व मलिनता छोड़ देता है। जो शख्स सतगुरु का दामन मजबूती से पकड़ लेता है उसे सच्चे मालिक की शरण आप से आप प्राप्त हो जाती है क्योंकि सतगुरु सच्चे मालिक की शरण लिये है।

जो शख्स सतगुरु की शरण इख्तियार कर लेता है उसकी यह हालत होती है कि हर  नीच ऊँच हालत में,  जो उसके सिर पर आती है , वह सतगुरु व सच्चे मालिक की महसूस करता है और सदा अपने सिर पर उनकी रक्षा का हाथ देखता है ।

 ऐसी शरण को  अन्नयभक्ति कहते हैं । उसका नतीजा यह होता है कि प्रेमीजन सतगुरू के हृदय  में घर कर लेता है यानी उनका प्यारा हो जाता है और जो उनका प्यारा होता है वह मालिक का भी प्यारा हो  है और जो मालिक का प्यारा हो जाता है वही उसके चुनाव में आता है और जो मालिक के चुनाव में आता है उसी को मालिक का दर्शन प्राप्त होता है जैसा कि मुंडक उपनिषद में आया है :- " यमेवैष वृणुते तेन लभ्य:"       
                               
  यानी जिसको वह आप चुन लेता है वही उसे पाता है ।।   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
       

  सत्संग के उपदेश
- भाग तीसरा

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।


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