Tuesday, October 27, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम 27/10

 **राधास्वामी!! 27-10-2020

- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- 

                                  

  (1) आज हंगामये शादी का गरम हो रहा देखो हर जा। राधास्वामी की दया का करो सब शुक्र अदा।।-(राधास्वामी की दया से यह मुबारक जोडा। खुश रहे याद में चरनों के करे मन को फिदा।।) (प्रेमबानी-4-गजल-6,पृ.सं.7-8)                                                       

(2) नैया मेरी बूडत थी जल माह़ि।।टेक।।     काम क्रोध के काले बदला बरषा रहे बरसाय। नौ द्वारन से पानी भरता रोका नाहिं रुकाय।।  -(भौजल पार सहज मैं पहुँची रहु गुरु के गुन गाय। धन राधास्वामी प्यारे सतगुरु जिन बूडत लई बचाय।।) ( प्रेमबिलास-शब्द-77,पृ.सं.109-110)                                                    

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग-दूसरा-कल से आगे।                              🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 27-10 -2020

 शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-( 26) 

अब देखिए                      

  कबीर साहब क्या फरमाते हैं:-                                                    

गुरु को कीजे दण्डवत, कोटि-कोटि परनाम। कीट न जाने भृंग को , गुरु कर ले आप समान।। 

 गुरु को मानुष जानते, चरनामृत को पान । ते नर नरकै जायँगे, जनम जनम होय स्वान।। यह तन बिष की बेलरी, गुरु अम्मृत की खान। सीस दिये जो गुरु मिलें तो भी सस्ता जान।।  गुरु से ज्ञान जो लीजिये, सीस दीजिये दान। बहुतक भौंदू बह गये, राखि जीव अभिमान ।। 

गुरु को सिर पर रखिये, चलिये आज्ञा माहिं। कहे कबीर ता दास को, तीन लोक डर नाहिं।। जो कामिन परदे रहे, सुने न गुरु की बात। सो तो होगी सूकरी , फिरे उघारे गात।। वस्तु कहीं ढूंढे कहीं, केहि बिधी आवे हाथ। कहे कबीर तब पाइये, जब भेदी लीजे साथ।। 

भेद लीया साथ करि, दीनी वस्तु लखाय। कोटि जनम का पंथ था, पल में पहुँचा जाय।। कबीर गुरु की भक्ति कर, तज विषया रस चौज। बार-बार नहीं पाइहै, मानुष जन्म की मौज।। जा खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि देवा। कहे कबीर सुन साधवा, कर सतगुरु सेवा।।

 साध मिले साहब मिले, अंतर रही न रेख। मनसा वाचा करमना, साधू साहब एक।। अलखपुरुष की आरसी, साधु ही की देह। लखा जो चाहे अलख को , उनहीं में लख लेह।। 

साधू आवत देखि कर, मन में धरे मरोर। सो तो होसी चूहड़ा, बस गांव के छोर।। साधन के मैं संग हूँ, अन्त कहूँ नहिं जाउँ। जो मोहिं अरपै प्रीत से, साधन मुख होय खाउँ।।

 साध मिले यह सब टलें, काल जाल जम चोट। सीस नवावत ढह पडे,अघ पापन की पोट।।    

                                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻       

                                             

यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा

 -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज! 

【शब्दो के अर्थ】  

-(कीट-कीडा), (भृंग-एक जीव जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि कीडों को अपना शब्द सुनाकर अपने जैसा बना लेता है), (पान-पानी),(स्वान-कुत्ता), (बीष-जहर),(भौंदू-मेर्ख), (कमिन-स्त्री), (सूकरी-सूअरी), (चौच-संसार के विषयों का बिलास), (आरसी-एक भूषण जो स्त्रियाँ अँगूठे में पहनते है और जिसमें मुख देखने के लिए दर्पण लगा रहता है।】**


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