Tuesday, October 6, 2020

दयालबाग़ सतसंग 06/10

👆🏻राधास्वामी!! 06-10-2020- आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ:-                                  

   (1) रात गुरु भेदी ने मुझसे यो कहा। तुम से गुरु का भेद नहिं राखूँ छिपा।।-(कोई नहिं भेदी है सतगुरु धाम का। बस यही कि घंटू की आवे सदा।।) (प्रेमबानी-3-वजन-2,पृ.सं.391-392)                                                  

    (2) सेवक करे पुकार धार चित दृढ बिस्वासा। सतगुरच होयँ दयाल दान दें चरन निवासा।।-( प्रेमी बाल सबन का ऐसा लेखा। प्रीति जहाँ जिस लगी छुटे पर मरते देखा।।) (प्रेमबिलास-शब्द-67-सेवक सम्वाद (प्रश्न) पृ.सं. 89)                                                      

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।                                  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 06 -10  शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे-(6)

 का शैष भाग

:-तात्पर्य यह है कि सच्चे सतगुरु के चरणो में पहुँचकर प्रेमीजन अपनी हार्दिक अभिलाषा पूरी होने की आशा में परम दीनता, श्रद्धा और प्रेम के साथ बर्तता हैः और जब तब अंतरी दया और सहारे के परिचय पाकर बार-बार उनके चरणों में सिर झुकाता है।  

जब किसी अंश में ह्रदय की निर्मलता प्राप्त होने पर उसे अन्तर में गुरु महाराज के दिव्य स्वरूप का दर्शन प्राप्त होता है तो आनंद में भरकर वह अपना तन, मन, धन उनके चरणों में भेंट करने के लिए उद्दत हो जाता है। 


और ऐसे तजरुबों के बाद उसे गुरु महाराज बड़े भाई के स्थान में आध्यात्मिक पिता, आध्यात्मिक पथप्रदर्शक और आध्यात्मिक मित्र दिखाई देते हैं । और उसके हृदय में बार-बार उमंग उठती है कि जो कुछ भी मूल्य माँगा जाय दे करके एक बार उनके दिव्य स्वरूप का स्पर्श करें । 

परंतु जो कि इस अलभ्य लाभ के लिए गहरी निर्मलता और विशेष कोटि की आध्यात्मिक जागृति आवश्यक है इसलिए वह तड़प तड़प कर रह जाता है और गर्दन -कटे पक्षी की तरह अपने दिन काटता है।                   

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                             

 यथार्थ प्रकाश-भाग-2-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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