Wednesday, October 7, 2020

स्वराज्य ( नाटक )

 **परम गुरु हजूर साहबजी महाराज -  

           

【 स्वराज्य 】कल से आगे:-               

 सन्यासी:- पूज्यवर देवियों!  यह उग्रसेन पापी आपके सामने उपस्थित है- मेरे अपराधों को क्षमा करो- मैंने शुरू से इस जल्से की सब कार्रवाई को गौर से सुना है- मेरा संकल्प पूरा हो गया है और मैं आप लोगों की सेवा के लिए हाजिर हूँ।।  

              

    [ राजकुमारी कुर्सी से उठकर उग्रसेन के गले में लिपट जाती है और चीख मार कर कहती है ] 

राजकुमारी- मेरे पिताजी !मेरे प्राण प्यारे पिताजी! ( तमाम हाजिरीन जार जार रोने लगते हैं और सन्नाटे में आ जाते हैं )  

    यूनानी अफसर-(सिपाही से) क्या यह पुराना राजा ही तो नहीं है?  उसका नाम उग्रसेन ही तो था ? 

 सिपाही -मालूम तो यही होता है कि यह पुराना राजा ही है और यह औरत इसकी लड़की है।  

अफसर- फिर तो जलसा बर्खास्त करना चाहिए वरना बलवा हो जाएगा।[

 दोनों चबूतरे की तरफ बढ़ते हैं और अफसर डाँट कर बोलता है] अफसर- मैं बतौर अफसर पुलिस को हुक्म देता हूँ कि जल्सा बर्खास्त किया जावे -

यह दोनों औरतें और यह साधू गिरफ्तार किए गये- बाकी सब हाजरीन 5 मिनट के अंदर तितर बितर हो जायँ। हाजरीन- हम भी गिरफ्तार है, तितर बितर न होंगे।

 राजकुमारी-( खड़ी होकर) प्यारी बहिनो कृपा करके चुपचाप अपने घरों को चली जाओ -मैंने अब तक आप लोगों को यही नहीं बताया कि मैं महाराज उग्रसेन की पुत्री हूँ!  महाराज उग्रसेन 20 बरस के बाद अब लौट आये हैं -आप किसी प्रकार की चिंता न करें -हमें स्वराज्य जरूर मिलेगा- हमें गिरफ्तार हो जाने दो - यवनसम्राट बड़े बुद्धिमान है -जाओ ,जाओ ,कृपा करके अपने घरों को जाओ।[ हाजिरीन आहिस्ता आहिस्ता रवाना होते हैं -सबकी आंखें राजकुमारी और महाराजा उग्रसेन की तरफ है । यूनानी अफसर तीनो को अपने हमराह ले जाता है।

 क्रमशः            

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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