Tuesday, October 6, 2020

भक्ति की भाषा एक

  प्रस्तुति -कृष्ण मेहता: 

🙏 *माया बाहर नही है, इस संसार मे माया भी आपके ही मन की उपज है* 🙏


साधारणत: लोग समझते हैं माया उसे कहते हैं जो नहीं है। इसलिए अंगेजी में उसका अनुवाद लोग 'इलूजन' करते हैं। वह अनुवाद गलत है।

माया का अर्थ यह नहीं है। माया का अर्थ सम्मोहन है, 'हिप्रोसिस'। माया का अर्थ है, मनुष्य के मन की ऐसी क्षमता कि वह जो भी मान ले, वैसा ही इसके मन के समक्ष होना शुरू हो जाता है। उसकी मान्यता ही यथार्थ बन जाती है। वह जैसा स्वीकार कर ले, जैसा अंगीकार कर ले, वैसा ही घटना होना शुरू हो जाता है। 


माया मनुष्य के मन की एक क्षमता है और इसी का बड़ा विस्तार पूरे जगत में दिखायी पड़ता है। सारे मनुष्य मिलकर सारे जगत में जो सम्मोहन की अवस्था पैदा करते हैं, वह पूरे जगत की माया बन जाता है। जैसे एक आदमी पागल है तो एक आदमी पागल है। अगर पूरा समूह पागल हो जाए तो वह समूह जो पैदा करेगा वह पूरे ही जगत को पागल कर देगा।


माया मन की सम्मोहित होने की क्षमता का नाम है। सम्मोहन का अर्थ है, किसी चीज के यथार्त रूप का मन के पीछे छिप जाना। जब इस संसार और हमारे बीच मे मन आ जाता है वही माया का कार्य शुरू हो जाता है। फिर मनुष्य माया के वशीभूत होकर शरीर को ही सब कुछ समझ लेता है, और सब तरह के कर्मों को करता है। 


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 प्रस्तुति - कृष्ण मेहता


: *👇मन ही मन भगवान से क्या बातें करें.... क्या मांगे👇*


*1 - हे मेरे स्वामी ! मेरी इच्छा कभी पूर्ण न हो... सदैव आपकी ही इच्छा पूर्ण हो... क्योंकि मेरे लिए क्या सही है... ये मुझसे बेहतर आप जानते हैं ।*


*2 - हे नाथ ! मेरे मन, कर्म और वचन से.. कभी किसी को भी थोड़ा सा भी दुःख न पहुँचे... यह कृपा बनाये रखें ।*


*3 - हे नाथ ! मैं कभी न पाप करूँ.. न होता देखूं.. न सुनू.. और न ही कभी किसी के पाप का बखान करूँ ।*


*4 - हे नाथ ! शरीर के सभी इन्द्रियों से आठो पहर... केवल आपके प्रेम भरी लीला का ही आस्वादन करता रहूँ ।*


*5 - हे नाथ ! प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में भी... आपके मंगलमय विधान देख सदैव प्रसन्न रहूँ ।*


*6 - हे नाथ ! अपने ऊपर महान से महान विपत्ति आने पर भी... दूसरों को सदैव सुख ही दिया करूँ ।*


*7 - हे प्रभु ! अगर कभी किसी कारणवश... मेरे वजह से किसी को दुःख पहुँचे... तो उसी समय उससे हाथ जोड़कर क्षमा माँग लूँ ।*


*8 - हे प्रभु ! आठो पहर रोम रोम से... केवल आपके नाम का ही जप होता रहे ।*


*9 - हे प्रभु ! मेरे आचरण श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीरामचरितमानस के अनुकूल हों ।*


*10 - हे मेरे प्रभु ! हर एक परिस्थिति में मुझे आपके ही दर्शन हों ।*


*🙏🌸सर्वे भवन्तु सुखिनः🌸🙏*

*ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ*

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