Tuesday, October 20, 2020

रोजाना वाक्यात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत-

 कल से आगे:

-  उन्होंने कुछ लोगों के नाम सिफारशी चिट्टियां तलब कीं। मैंने कहा भाइयों!  यह क्या गजब करते हो? इतने बुलंद आदर्श ,और शिफारशी चिट्टियों पर अवलंबन ? बेहतर होगा की 1-2 पब्लिक लेक्चर दो और अपने जौहर दिखलाओ । लोग खुद आपके घर आयेंगे। अफसोस उन्हें यह मशवरा पसंद न आया उन्होंने कहा हमारे लिए यही हुकुम है कि लोगों के घर जाकर उनके दरवाजे खटखटाओं। मैंने कहा अगर यही है तो बिस्मिल्लाह कीजिए। फिर अमीरों और बड़े आदमियों को क्यों चुनते हो। जो घर रास्ते में आयें, चाहे अमीरों के हो चाहे गरीबों के , सब पर कृपा कीजिये। इस पर वह हँसने लगे । मैंने दो चिट्ठियाँ देकर रुखसत हासिल की ।।                                

 रात के सत्संग में इसी विषय पर बहस हुई। क्या वजह है कि लोग ईश्वर , मालिक व खुदा का नाम भी लेते हैं, उसकी भक्ति का उपदेश भी करते हैं लेकिन उसका भरोसा नहीं रखते। मेरी राय में वजह यही है कि उन्होंने मालिक से नजदीकी हासिल करने का कभी साधन नहीं किया । न उन्हें मालिक से नजदीकी हासिल है, न उन्हें उससे कभी कोई निर्देश मिलती है। न उसने उनके जिम्में  अपना उपदेश फैलाने का काम किया है और न ही वह इस काम के योग्य हैं।

 उन्हें मालिक का काम करने की लालच जरूर है लेकिन अधिकार नहीं है।  यही वजह है कि मजहब गलियों में मारा मारा फिरता है और बड़े-बड़े उपदेशक रूपए पैसे की फिराक में दुनियादारों के दरवाजों पर धक्के खाते हैं। 

जबकि आप अपने काम हर किसी के सुपुर्द नहीं करते और हमेशा एहतियात करते हैं कि आपके काम काबिल आदमियों के सिपुर्द हो फिर दुनिया कैसे उम्मीद करती है कि हर शख्स ईश्वर, खुदा या मालिक का उपदेश फैलाने का अधिकारी है। यह लोग महज मालिक के नाम व मिशन का चोला पहनकर अपने मन के अंगों में बरतते हैं। और मजहब व ईश्वर दोनों को दुनिया में बदनाम करते हैं।                     

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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