Tuesday, October 6, 2020

शब्द खुलेगा खेत सेवा से

 खेतों में सेवा करने से शब्द खुलने की भी संभावना है


 


    25 अगस्त सन् 1979 ई ० को शाम के सतसंग में वही दूसरा शब्द ' बिनती करूँ पुकार पुकारी ' पढ़ा गया जो 24 अगस्त को पढ़ा गया था और परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज का वही बचन नं 62 पढ़ा गया जो पिछले दिन पढ़ा गया था ।

इस के पश्चात परम पूज्य डाक्टर लाल साहब ने फ़रमाया कि इन के दोबारा पढ़वाए जाने का मक़सद यह था कि आप इनका मतलब समझ लें । इस का मतलब जैसा मैं समझा कल आपके सामने रखने की कोशिश की । 

मैंने कल यह भी कहा था कि खेतों में सेवा करने के बहुत फ़ायदे होते हैं । कुछ बातें मैंने कल बतलाई वह बीच में मलेरिया बुखार  की दवाई बटनी शुरु हो जाने के कारण अधूरी रह गई । उस सम्बन्ध में मैं एक दो बातें और अर्ज करना चाहता हूँ । इस शब्द में दो जगह ऐसी Prayer है कि मन बहुत परेशान करता है , इधर उधर भागता है , तमाम तरह की उपाधि उठाता है तो इसको किस तरह कन्ट्रोल किया जाए । 

दूसरी प्रार्थना यह है कि घट में दर्शन हों । ये दोनों चीजें मुश्किल है । मैंने पहले भी यह अर्ज किया था कि आजकल के जमाने में life में जो Stress और Strain है उसमें ध्यान और भजन बनना बड़ा मुश्किल है और इस सिलसिले में आपको Suggest किया था कि आप खेतों में सेवा करें । 

आप यदि खेतों में चुपचाप काम करेंगे तो थोड़े दिनों में मन इधर उधर दौड़ना बन्द कर देगा । हर सतसंगी , जो खेत में जाता है उसको वहाँ पहुँचकर हुजूर की याद ताजा हो जाती है अगर आप थोड़े Concentration से काम करें तो आप महसूस करेंगे कि यहाँ पर हुजूर चलते थे , यहाँ पर तशरीफ़ रखते थे , यहाँ ये बातें हुई थीं । 

पुरानी बातें आपको याद आ जायेंगी । उनके याद आने से उनका स्वरूप आपके अन्दर घस जाएगा । मैं समझता हूँ कि इस तरह से आपको सहूलियत से घट में दर्शन मिल सकते हैं । अगर आपने साथ ही सुमिरन भी जारी रखा और उनकी दया से आपका ध्यान बार बार जिस तरह से वह चप्पे चप्पे पर अपने चरण कमल रखते थे , बातें लोगों से करते थे , तशरीफ रखते थे , उस तरफ़ रहा तो ये सब पिक्चर के रूप में बार बार आपके सामने आएँगी । 

इससे आपके सुमिरन ध्यान दोनों बनेंगे । इस वास्ते मैंने आपसे अर्ज किया था कि आप जहाँ तक हो सके , जितना बन सके , खेत में जरूर तशरीफ़ ले जाएँ । तन , मन , धन अर्पण करने की जो बात थी वह तो अलग थी । इससे ज्यादा important यह है कि आपको वहाँ जाने से हुजूर की याद तरो ताजा हो जाएगी ।

 हर वक्त आपको याद रहेगी तो इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है । इस बचन के latter पार्ट ( पिछले हिस्से ) में जब स्वप्न देखने वाले की आँख खुल गई तो स्वप्न देखने वाले ने अपने आप को दयालबाग में पाया और यहाँ जैसे पहले काम चल रहा था वैसे ही काम चलते हुए पाया । 

इस बचन को सुनने के बाद क्या आप यह नहीं सोचते कि जो बात हुजूर सामने थी और जिसमें हुजूर बहुत interest लेते थे वह Field work ( खेती ) थी । अब अगर हम इस काबिल नहीं रह गए कि उसको आगे बढ़ा सकें तो क्या हमारी यह कोशिश नहीं होनी चाहिए कि जितनी खेती हुजूर के सामने मौजूद थी उसी Condition को किसी तरह मौजूद के रक्खें ताकि अगर दया से वह कभी यहाँ तशरीफ़ लावें तो कम से कम उनको इतना इत्मीनान हो जाए कि दयालबाग के सतसंगी उनके कहने 97 काम नजदीक हो चल रहे हैं । इसी वास्ते मैंने खेतों में जाने के लिए बार बार कहा l


 मैं समझता हूँ कि हर एक आदमी के लिए हर रोज खेत जाना मुश्किल है लेकिन जब जिससे हो सके जरूर जाए । खास तौर से जब डेरी में या और कहीं कॉलोनी के नजदीक हो तो वहाँ जरूर जाए और थोड़ा ही घंटा आध घंटा रुक कर काम करे । में यह नहीं चाहूँगा कि सतसंगी अपने आपको इस सेवा से महरूम रक्खें ।

 एक बात और अर्ज कर दूं कि सेवा , सतसंग , सुमिरन , ध्यान , भजन आपके पाँच Principles हैं जिन पर चलकर आप अपना object प्राप्त करते हैं । इन में सेवा का नम्बर सब से पहले है सतसंग भी important है पर सतसंग और सेवा में आप यों फ़र्क कर सकते हैं कि सतसंग जब आप करते हैं तो आप अपने Self को फायदा पहुंचाना चाहते हैं पर जब आप सेवा करते हैं तो अपने Self को तो फायदा पहुंचाते ही है पर तन , मन , धन अर्पण करके दूसरों को और संगत को भी फ़ायदा पहुंचाते हैं । 

इस result से सतसंग की अपेक्षा सेवा ज़्यादा important हुई । इस वास्ते मैंने अर्ज किया था कि अगर आप सतसंगियों की सेवा करते हैं , संगत की सेवा करते हैं तो सेवा नम्बर एक पर है खाली सतसंग में बैठ करके अपनी सेवा करने से यह दूसरी तरह की सेवा ज्यादा अच्छी है और अगर आप ठीक से सेवा करें जैसा कि मैंने एक मिनट पहले कहा था कि सुमिरन भी होगा और अगर आप खेत में जाएँगे और alert भी रहेंगे , थोड़ा सा concentrate भी करेंगे , बातों में वक्त जाया नहीं करेंगे तो हुजूर का ध्यान करने का भी मौक़ा आप को मिलेगा । Remembrance of association एक बहुत बड़ी चीज होती है ।

 इससे आप Association of Ideas के वातावरण में पहुँच जाते हैं 

जहाँ आपको बरसों पहले की बातें याद आ जाती हैं कि फुलौं जगह हुजूर के साथ रहे , यह बातचीत हुई । इसका नतीजा यह होता है कि आपको हुजूर का ध्यान पूरा आ जाता है । इस तरह सेवा करने से ध्यान वाला objective भी प्राप्त कर लेते हैं और आपने हुजूर की याद अच्छी तरह की और उसी समय सुमिरन भी करते रहे तो मुमकिन है कि किसी दिन छठे चक्र पर सुमिरन और ध्यान का Concentration हो जाने पर मालिक आप पर दया करे और आपकी आगे की काररवाई बहुत सहल हो जावे । 


लोग कहते हैं कि शब्द नहीं खुलता । यह भी एक तरीका है कि जिससे शब्द खुल सकता है । सुमिरन करेंगे , हुजूर के स्वरूप का ध्यान करेंगे तो शब्द सुनने की भी संभावना है । अगर आप इस सब को Connect कर लें तो सेवा और उसके साथ साथ ध्यान connect हो जाता है और ध्यान के साथ भजन के connect होने की एक सहल तरकीब निकल आती है । दूसरा alternative ( विकल्प ) यह है कि आप अपने घर में कोठरी में बैठे और सुमिरन , ध्यान , भजन करने की कोशिश करें इन दोनों में से जो आप सहूलियत से कर सकें उसे करें । शायद जो पहला नुस्खा खेत में जाने का है उससे ये सब चीजें आसानी से पूरी हो सकती हैं । 


इस वास्ते मैंने आज दोबारा यह शब्द और बचन आपको सुनवाया । अब एक शब्द प्रेमबानी से निकाल कर पढ़ दीजिए जिस पर नीचे लिखा शब्द पढ़ा गया –


सरन गुरु सतसंग जिन लीनी ।

हुए मन सुरत चरन लवलीनी ।।


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