Saturday, October 31, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम 31/10

 **राधास्वामी! /  31-10- 2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                               

   (1) लगे है सतगुरु मुझे पियारे। कर उनका सतसंग शब्द धारे।। छुटे है मन के बिकार सारे। कहूँ मैं कैसे गुरु कि गतियाँ।।-(जगा है मेरा अपार भागा। चरन में राधास्वामी आन लगा।। गायें सब जीव माया रागा। रहे है थक मग में जोगी जतियाँ।।) (प्रेमबानी-4-गजल-10-पृ.सं.11-12 )                         

 (2) सरन पडे की लाज प्रभु राखो राखनहार।।टेक।। निर्गुनियारा गुन नहिं एको औगुन भरे हजार।।-(जामें छुटे कंटक करमा चरनन मिले अधार।। राधास्वामी सतगुरु परम दयाला दीजे कष्ट निवार।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-80-पृ.सं.113)                                             

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 31-10 -2020- 

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे- (30)

                                         

 इसी तरह मिस्टर जार्ज सेल के कुरान शरीफ में के अंग्रेजी अनुवाद की भूमिका में पृष्ठ 37 पर लिखा है- इस स्थान पर यह प्रकट करना अनुचित न होगा कि उस समय मुसलमान पैगंबर साहब का कैसा अनुमान से बाहर सम्मान करने लगे थेंं•••••••••••• 

राजदूत ने बयान किया कि उसे रोम और ईरान के बादशाहों के दरबारों में जाने का अवसर मिला था, पर जिस दर्जे का सम्मान मोहम्मद साहब के सहाबा (निकटवर्ती ) करते थे ऐसा किसी शहजादे का देखने में नहीं आया। क्योंकि जब पैगंबर साहब नमाज अदा करने के लिए वजू करते थे तो सहाबी दौड़कर बरते हुए पानी को उठा लेते थे और जब पैगंबर साहब थूकते थे वे तुरंत उसे चाट लेते थे और जब कोई उनका बाल गिर जाता था वे बड़ी श्रद्धा से उठा लेते थे।  

                                    

  (31) भाई ज्ञानसिंहजी ज्ञानी रचित' तवारीख गुरु खालसा' के पहले भाग (जो सन 1923 ईस्वी में छपी है ) के पृष्ठ 74 पर लिखा है-" एक रोज गुरु नानक साहब ने इंम्तहानन एक मुर्दे की लाश को दरिया के किनारे पर देखकर हुक्म दिया कि जो शख्स हमारे कोल (बचन ) पर एतबार रखता है वह इस मुद्दे को खावे यह सुनकर सब चुप रह गए किसी ने जरूरत ना कि अगर सामने फोन हुकुम की तामिल की रवायत है जी खाने को गए तो उनको कड़ा प्रसाद की लज्जत का मालूम हुआ।।                                                   (32) इसके अतिरिक्त गुरु गोविंद साहब के पाँच प्यारों और समर्थ रामदास जी के गुरुमुख शिष्य  शिवाजी के चरित्र और आत्मसमर्पण का वृतांत इतना प्रसिद्ध है कि उसको या लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा 

-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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