Friday, October 23, 2020

दयालबाग़ सतसंग 23/10 शाम

 **राधास्वामी!! 23-10-2020-

 आज शाम  सतसंग में पढे गये पाठ:-       

                              

   (1) आज सतगुरु के चरन में तू लगा ले नेहरा।।टेक।। शौक के साथ करो सतसंग उनका। मेहर से उनके तेरा छूटे चौरासी फेरा।।-(राधास्वामी की सरन धार ले दृढ कर मन में। वे करें मेहर तेरा पार लगावें बेडा।।) (प्रेमबानी-4-गजल-2,पृ.सं.3)                                                                  

 (2) सेवक सुन पहिचान मगन होय बोला ऐसे। सर्व गुनन भंडार कहे कोई गुन तुम कैसे।।-(सोच फिकर सब छुटें करे जिव कौन उपावो। गहरी गुरु से प्रीति जुडे कस सो कह गावो।।) (प्रेमबिलास-शब्द-75 पृ.सं.105-106)                                                 

   (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।         🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 23 -10 -2020

 आज शाम  सत्संग में पढ़ा गया बचन- 

कल से आगे-( 23)  

गुरु अर्जुन साहब फरमाते हैं -अंतर में गुरु को आराधो अर्थात अंतर में गुरु की याद करो और जबान से गुरु का नाम उच्चारण करो। आंखों से सतगुरु का दर्शन करो और कानों से गुरु का नाम सुनो । जो सतगुरु के साथ रत हो जाता है यानी गहरा प्रेम करता है उसको मालिक के दरबार में जगह मिलती है। पर जिस जीव पर मालिक कृपा करता है उसी को यह वस्तु मिलती है। 

जगत् में इस दात के लिए अधिकारी जीव कोई विरले ही होते हैं । और देखिए:- गुरमुख नादं गुरुमुख वेदं गुरुमुख रह्या समाई। गुरु ईशर गुरु गोरख ब्रह्म गुर पारवती माई।।( जपजी साहब पौडी ४)        

                                    ●             ●              ●            ●       ब्रह्मज्ञानी जिस करें प्रभ् आप, ब्रह्मज्ञानी का बड़ परताप।                                                       ●             ●               ●                ●                       

 ब्रह्मज्ञानी को खोजें महेशुर, नानक ब्रह्मज्ञानी आप परमेशुर।                                                  ●               ●                ●                 ●             

ब्रह्मज्ञानी का अंत न पार, नानक ब्रह्मज्ञानी को सदा नमस्कार।  ब्रह्मज्ञानी सब सृष्टि का करता , ब्रह्मज्ञानी सद् जीव नहीं मरता । ब्रह्मज्ञानी मुकति जुगति जीव का दाता, ब्रह्मज्ञानी पूरन पुरख विधाता।  ब्रह्मज्ञानी अनाथ का नाथ, ब्रह्मज्ञानी का सब ऊपर हाथ।  ब्रह्मज्ञानी का सगल अकार, ब्रह्मज्ञानी आप निरंकार।                               

  [सुखमणि साहब, अष्टपदी ( 8) ]            

                                             

  कोई आन मिलावे मेरा प्रीतम प्यारा।  हौं तिस पहि आप वेचाई। दर्शन हर देखन के ताई। कृपा करें ता सतगुरु मेले, हर हर नाम धियाई(१)।।रहाव।।।                                        

●          ●           ●          ●          

तन मन काट काट सब अरपी, विच अगनी आग जलाई। पक्का फेरी पानी ढोवां, जो देवे सो खाई।                                                           ●          ●          ●           ● 

अक्खी काढ धरी चरनातल, सब धरती फिर मत पाई।     ●         ●           ●            ●   

वार वार जाई गुर ऊपर, पै पैरी सन्त मनाई।  नानक विचारा भया दीवाना, हर तौ दर्शन के ताई। (सूही महल्ला ४) 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

No comments:

Post a Comment

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...