Saturday, October 10, 2020

रोजाना वाक्यात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत-

 2 फरवरी 1933 - बृहस्पतिवार:

- अमृतसर में एक नई सोसाइटी कायम हुई है जिसका नाम है सतधर्म या हक परस्त सोसाइटी । उस सोसाइटी के खास तीन उद्देश्य है:- (१) वर्ग इंसान में बंधुत्व समानता पैदा करना।।                          (२) बिना भेदभाव मजहब, कौमियत व मुल्क इंसानों को ब्याह शादी व खाने पीने का उचित ठहराना , और (३)  इंसानों के बीच से अछूतपन का ख्याल मिटा देना। तीनों उद्देश्य निहायत लाभकारी है। सत्संग की तालीम भी यही दी गई है कि सब इंसान एक कुल मालिक के पुत्र होने से भाई हैं और कोई कौम या जाति अछूत नहीं है । और सत्संगी जिस कौम, मजहब के बाशिंदों से जी चाहे शादी कर सकते हैं। खाने-पीने के मुतअल्लिक़क इतनी पाबंदी है कि बुरे आचरण वाले लोगों के साथ खाने-पीने से परहेज करें।  गर्जे कि इस सोसाइटी के उद्देश्य सत्संग की तालीम के अनुकूल है। इसके अलावा उस सोसाइटी में हमारे दिल पसंद बात एक यह भी है कि उस उस सोसायटी के बानी आर. एस. ठाकुर साहब योगाचार्य चंदा मांगने के सख्त खिलाफ है।  आज उस सोसाइटी के अखबार इंसाफ में यह खबर पढ़कर अत्यधिक खुशी हुई । शुक्र है कि एक सोसाइटी तो इस मुल्क में ऐसी पैदा हो गई जो सत्संग से सहमत राय है कि मजहब के लिए चंदा माँगना निषेधित होना चाहिये। ठाकुर साहब तहरीर फरमाते हैं कि जिसको उनके काम से मोहब्बत हो वह इच्छा अनुसार धन दे सकते हैं। चुनाँचे सत्संग में यह रिवाज है कि सत्संगी अपनी इच्छा अनुसार धन पेश करते हैं । अखबार अल फजल में खलीफा साहब ने जो बयान सत्संग की पॉलिसी के मुतअल्लिक़ प्रकाशित कराया है वह सरापा गलत है। आप फरमाते हैं कि हम लोग जा बजा अपने कारखानों की चीजें दिखलाकर और मुल्क में कला कौशल की तरक्की की विवशता पेश करके लोगों से सहायतार्थ धन हासिल करते हैं और झूठ मुठ के लिए दूसरों से कहते हैं कि चंदा नहीं लेते। सख्त ताज्जुब है कि हजरत मसीह मौऊद के उत्तराधिकारी बुजुर्ग की तबीयत ने क्यों कर सहन किया कि ऐसी सोसाइटी के मुतअल्लिक़ जिसने जन्मदिन से लेकर आज तक यानी अपनी जिंदगी के 71 सालों में कभी जनसामान्य के सामने हाथ नहीं फैलाया और गैर सत्संगी लोगों की पेशकर्द  बड़ी बड़ी रकम तक मंजूर करने से कतई इंकार कर दिया इस किस्म के वाक्य जबान पर व तहरीर में लाये जायें?  बहरहाल सतधर्म सोसाइटी के उद्देश्य और चाल प्रशंसनीय है और उसके जन्मदाता साहब शुक्रिया के अधिकारी हैं ।।।                                   कॉरेस्पॉन्डेंस के  वक्त एक भाई के दरयाफ्त करने पर बयान हुआ कि" समदृष्टि"  के यह मानी नहीं है कि ऐसी दृष्टि वाले पुरुष को अच्छे बुरे या सुर्ख व सफेद की तमीज नहीं रहती  समदृष्टि वाला आम लोगों की तरह सफेद को सफेद और सुर्ख को सुर्ख , भले को भला और बुरे को बुरा ही देखता है लेकिन उसके लिये किसी के लिये आकर्षण व नफरत नहीं होती। वह भले और बुरे दोनों की इज्जत करता है और दोनों की बेहतरी चाहता है।  जैसा कि फरमाया है:-                 कोई आवे भाव ले कोई आवे अभाव।                साध दोऊ को पोषते देख भाव न अभाव।।              रात के सत्संग में बयान हुआ कि जब तक किसी इंसान को आत्मदर्शन प्राप्त नहीं हो जाते तब तक न उसके दिल से शंकाये मिटते हैं और न उसे परमार्थ के असली समझ आती है । यह दुरुस्त है कि आत्मदर्शन की प्राप्ति एक सख्त मुश्किल मामला है लेकिन उसकी प्राप्ति के लिए चाह उठाना और उसे अपनी जिंदगी का उद्देश्य बनाना तो मुश्किल नहीं है ? इतना ही करने पर जिज्ञासु के दिल को बहुत कुछ शांति आ जाती है ।।                                   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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