Thursday, October 15, 2020

दयालबाग़ सतसंग 15/ 10

*राधास्वामी!! 14-10-2020 आज सुबह.सतसंग में पढे गये पाठ:-     

                        

(1) गुरु आरत बिधि दीन बताई। मोह नींद से लिया जगाई।।-(लगन लाग से आरत साजी। नाद अनाहद घट में बाजी।। ) (सारबचन-शब्द-7वाँ,पृ.सं.186-187)                                                 

(2) कोइ सुनो अधर चढ गुरु के बैन।।टेक।।                                       

  संत चरन में रहे लौलीना। घट में परखे उनकी कहन।।-(राधास्वामी दया पार पद पाया। सुरत लगी निज घर सुख लेन।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-58,पृ.सं.324-325) 

◆ 

दूसरा पाठ आज दोबारा पढा गया◆       

                      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

*

राधास्वामी!! 14-10-2020- 

आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- 

                                   

 (1) करो सतसंग सतगुरु का, भेद घर का वहाँ पाओ। धार परतीत चरनन में, दीन दिल सरन में धाओ।। -( मिली राधास्वामी से प्यारु, सरावत भाग निज अपना। भटक में बहु जनम बिते, पडा मेरा ऐसा अब दावो।।) (प्रेमबानी-3-शब्द 7 रेख्ता,पृ.सं.400-401)                                                       

(2) सुन सेवक का हाल दयानिधि बचन सुनाया। दया धार बरसाय दर्द दुख दूर बहाया।।                                                           

 बिन इस तन के और कहीं यह औसर नाहीं। कोटि जन्म भटकाय तभी यह हाथ लगाई।।                                                 

  (राधास्वामी कहा सुनाय खोल अब सारा भेदा। चरनन में लौ लाय हरो तन मन के खेदा।।)           

   (प्रेमबिलास-शब्द-70,पृ.सं.96-97)                                                     

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!! 14-10 -2020- 

आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- 

कल से आगे-(14) 

कल  शेष:- पर जैसे किसी कोठरी में, जिसका तापमान बहुत कम है, जलती आग की अँगीठी रख देने से उसकी गर्मी में एकदम वृद्धि कर दी जाती है ऐसे ही इस दुर्बलता की अवस्था में सतगुरु जब तब अभ्यासी के अंदर उसकी सुरत की बैठक के स्थान पर अपनी चैतन्य धार प्रवाहित करके उसकी चेतनता में वृद्धि कर देते हैं । 

और जैसे सूर्य की किरण किसी सूर्यकांत (आतिशी शीशे -वह काँच जिसके द्वारा सूर्य की किरणें एकत्र की जाती है) के द्वारा एकत्र करने पर एक छोटा सा सूर्य पृथ्वी पर बन जाता है जो आकाश में चमकने वाले असली सूर्य का नमूना होता है।

 इसी प्रकार गुरु महाराज की चैतन्य धार के अभ्यासी के सुरत की बैठक के स्थान पर एकत्र होने से उनके अन्तर में छोटे पैमाने पर उनका दिव्य स्वरुप प्रकट हो जाता है । उस स्वरूप के प्रकट होते ही न केवल अभ्यासी के मन और सुरत आत्मा की बैठक के स्थान पर पूरे तौर से एकत्र हो जाते हैं किंतु उनका रुख उससे ऊपर के स्थान की ओर हो जाता है। 

और इस प्रकार स्थान स्थान पर सहायता पा कर अभ्यासी की सुरत ऊँचे चैतन्य स्थानों पर चढती जाती है। जब किसी स्थान पर अभ्यासी की चेतनता में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है तो उसकी सुरत उस स्थान पर जागृत हो जाती है और अन्तरी शब्द की सहायता से वह धीरे धीरे ऊँचे से ऊँचे चैतन्य स्थान पर पहुंच कर सच्चे कुलमालिक से तदरूपता प्राप्त कर लेती है ।.   

      🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


No comments:

Post a Comment

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...