Wednesday, October 28, 2020

दयालबाग़ शाम सतसंग 28/10

**राधास्वामी!! 28-10-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) आज गुरु प्यारे के चरनों में झलकती है अजब मेंहदी की लाली।।टेक।। देखो गुरु प्यारे के चरनों में अजब म़ेहदी की लाली। हाथ भी सुर्ख है और मुखडे की छबी देखी निराली।।-( सुर्त बन्नी का मिला भाग से गुरु बन्ना से जोडा। राधास्वामी की दया पाय के निज घर चाली।।) (प्रेमबानी-4-गजल-7 पृ.सं.8-9) (2) सतगुरु दीजे मोहि इक दात।।टेक।। नीच निबल मैं गुन नहिं कोई। बल पौरुष कुछ जोर न गात।।-(राधास्वामी प्यारे होउ सहाई। बाल तुम्हारा रहा बिलकात।।) (प्रेमबिलास-शब्द-78,पृ.सं.110-111) (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻** **राधास्वामी!! 28 -10 -2020 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन - कल से आगे:-( 27) 【 सतगुरु सेवा 】: - जो युक्तियां (संसार में विषयों का बिलास) और उल्लेख प्रस्तुत हुए उनसे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि सतगुरु की पूजा, सेवा और भक्ति सच्चे दिल से करनी चाहिए पर यह स्पष्ट नहीं होता कि क्या क्या सेवा करनी चाहिए। अब इसी का वर्णन करते हैं ।। (28) सेवा चार प्रकार की है- तन, मन ,धन और सुरत से। प्रेमीजन इनमें से जो सेवाएँ प्रिय लगे कर सकता हैं। अपने शरीर को सतगुरु की सेवा में लगाना तन की सेवा; जैसे कुएँ से पानी भरना, मिट्टी खोदना और ढोना कपड़े धोना , चरण दबाना आदि। मन में सतगुरु के लिए प्रेम और श्रद्धा के भाव उठाना और उनको और उनकी संगत को सुख पहुँचाने की युक्तियाँ सोचना मन की सेवा है। अपना धन सतगुरु और संगत की आवश्यकताओं के लिए पेश करना धन की सेवा है । अंतर में उनके नाम और रूप को आराधना और शब्द-अभ्यास करना सुरत की सेवा है। पर विदित हो कि संतमत में सेवा का सिद्धांत सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए स्थापित नहीं किया गया किंतु प्रेमीजन के अंदर सच्ची दीनता और श्रद्धा उत्पन्न करने और उसके मन की चंचलता और मलिनता दूर करने के निमित्त प्रचलित किया गया है। तदनुसार राधास्वामी-मत में बतलाया जाता है कि अहंकार, प्रशंसा या स्वार्थ का भाव लेकर जो क्रिया की जाय वह सेवा का फल नहीं देती; इसलिए समझदार सत्संगी आपा और स्वार्थभाव छोड़कर सेवा करते हैं ।आपा और स्वार्थ भाव छोड़ देने पर प्रेमीजन और सतगुरु में दुई का भाव नहीं रहता । 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा ा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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