Monday, October 12, 2020

दयालबाग़ सतसंग / शाम

 **राधास्वामी!! 12-10-2020-

 आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-    

                                 

(1) प्यारे गफलत छोडो सर बसर, गुरु बचन सुनो तुम होश धर, मन की तरंगे रोक कर, सतसंग में तुम बैठो जाय।।-(क्या भूला तू धन माल देख, माया का सब जाल पेख। काल करम की मिटे रेख, जो सतगुरु की सरन आय।।) (प्रेमबानी-3-गजल-6,पृ.सं.399-400)

                                                 

  (2) सूनकर अमृत बचन अधिक सेवक हरषाया। तपन हुई घट दूर हिये बिच प्रेम भराया।। सुमिरन ध्यान और भजन जुक्ति निज घर चलने की। निज किरपा हिये धार दयानिधि तुमने बख्शी।।-(सतगुरु दीनदयाल मेहर अब ऐसी धारो। तन मन होकर नाश सुरत का होय उबारो।।) (प्रेमबिलास-शब्द-69,पृ.सं.94-95)                                       

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।  स्पेशल पाठ:- आज साहब घर मंगलकारी। गाये रही सखियाँ मिल सारी।।।                  

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!! 12-10- 2020- के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे -(12) 

भाई ज्ञान सिंह जी ज्ञानी रचित ' तवारीख गुरु खालसा' किस्सा अव्वल( चौथा एडिशन) के पृ. 83 और 84 पर गुरु अमरदास साहब के विषय में लिखा है --"एक रोज चन्द सिक्खों ने उनसे पूछा कि सिक्ख यानी मुरीद को किस तरीके पर कायम रहना चाहिए। 

 तब उन्होंने फर्माया कि मुरीद अपने गुरु यानी मुर्शिद के हुक्म पर हमेशा मिस्ल सदफ् (सीपी) के (जो अब्रे नेसा (स्वाँति बूंद) के कतरे को अपने दिल में रखकर मोती बना लेता है)  अमल करें । और हमेशा अलः सुबह पिछली रात को उठकर अपने गुरु का जप करें और गुरु की शक्ल का ध्यान करके अपने दिल को कायम करें।.......... और सिवाय अपने गुरु के और किसी देवी देवता, पीर पैगंबर की खुशामद व मिन्नत अपने नफे के वास्ते न करें"।।                                   

 (13) इसके अतिरिक्त पतंजलि महाराज के योगसूत्रो में आदेश है:-" वीतरागविषयं वा चित्तम्" ( सूत्र 37, प्रथम पाद)। " यथांभिमतध्यानाद्वा।"( सूत्र 39, प्रथम पाद)।  अर्थात संसार के मोह से रहित पुरुषों का ध्यान करने से तथा जिसमें उसका प्रेम है उसका ध्यान करने से मन को स्थिरता प्राप्त होती है।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                                

 यथार्थ प्रकाश- भाग 2 

-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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