Wednesday, October 7, 2020

दयालबाग़ सतसंग 07/10

 **राधास्वामी!! 07-10-2020

- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-  

                                  

 (1) जब देखा तेज मैनें जो मालिक के नाम का। दिल और जान भेंट हुए गुरु के नाम का।।-(सुमिरन से नाम के तू गमगीं न हो कभी। मालिक का प्यार आवे जो हो प्यार नाम का।। (प्रेमबानी-3-वजन-3,पृ.सं.393-394)                                                   

(2) सेवक करे पुकार धार चित दृढ बिस्वासा। सतगुरु होयँ दयाल दान दें चरन निवासा।। मैं हूँ बाल तुम्हार और सेवक भी साँचा। हो स्वामी सिरताज मेरे तुम पितु और माता।।-(परम गुरु दातार मेरे तुम राधास्वामी। चरनन लेव लिपटाय करो सब दुख की हानी।।) (प्रेमबिलास-शब्द-67, पृ.सं.90-91)                                                  

   (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                        🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 07-10-2020- 

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे -   (7)


 यदि प्राचीन काल के किसी साध, संत या फकीर की वाणी का पाठ किया जाय तो प्रेमी जिज्ञासु को ऊपर की बातों के समर्थन में स्थान स्थान पर वचन मिलेंगे। और उसे थोड़ा विचार करने पर समझ में आ जायगा कि किसी सच्चे पर प्रेमी का ऊपर लिखी दशाओं का आना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। 

बीमारी या कठिनाई के समय किसी हकीम या हाकिम से इच्छा के अनुसार या आशा से बढ़कर सहायता प्राप्त होने पर मनुष्य अपने उपकारियों के लिए क्या कुछ नहीं कर डालते?  और दुर्गम पहाड़ी स्थानों से सूर्य के उदय और अस्त के मनोहर दृश्य देखने या संसारी प्रीति से उत्तेजित होकर अपने प्रीतम की निकटता प्राप्त करने के लिए क्या-क्या कष्ट नहीं उठाते ?

 पर जिन लोगों को सुख का जीवन अभीष्ट है और जिन्होंने जैसे तैसे बने रहना जीवन का लक्ष्य बना रखा है उनको न तो मनचले वीरों की वीरता  रूचती है और न ही प्रेमीजनों का प्रेम भाव आता है ।

 वे अपने नीरस और अस्वादु जीवन के रसास्वाद  के चटकारे लेते हुए वीरों, प्रेमियों और उनके संम्मति - दाताओं और नेताओं के विषय में अत्यंत अनुचित शब्दों का प्रयोग करते हैं।                                                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग 2- 

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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