Wednesday, October 21, 2020

स्वराज्य (नाटक )

 **परम गुरु जी साहबजी महाराज-【 स्वराज्य】 

कल से आगे:- शाह- मगर चूँकि हमारा भाई हमारी अपनी माँ के गर्भ से और हमारे बाप के वीर्य से पैदा होता है इसलिए कुदरतन्  हमारे दिल में भाई के लिए बिरादराना मोहब्बत पैदा होती है।।                   

 [ यूनानी सरदार खुश हो कर हँसते हैं और दोनों संन्यासी सहम जाते हैं]  

उग्रसेन -आप बजा फरमाते हैं लेकिन अगर यह ख्याल रक्खा जावे कि हम सब की माता पृथ्वी है और सबका पिता सच्चा मालिक है तो ऐसी हालत में आपके फरमाने के बमूजिब हर इंसान के दिल में कुदरतन् एक दूसरे के लिए बिरादराना रिश्ता कायम होना चाहिये। 

शाह-( सोच कर ) तो इसके ये मानी हुए कि आयन्दा राज्य संसार में उन लोगों का होगा जो पृथ्वी को सबकी माँ और सच्चे मालिक को सबका बाप समझते हुए लोगों के दिलों में विरादराना मोहब्बत कायम कराने के काबिल हों? 

उग्रसेन- मेरा अनुभव तो यही कहता है। 

[ शाह सोच में पड़ जाता है- वजीर एक कागज पेश करके शाह के कान में कुछ बातें कहता है-  शाह कागज को पढता है]  

शाह- हाँ! आप कोई सबूत इस अम्र का दे सकते हैं कि आप साबिक राजा नगरकोट है? 

 उग्रसेन- मैं कोई सबूत पेश नहीं कर सकता- आप जिस तरह चाहे इत्मीनान फरमा लें। 

राजकुमारी -आप मेरे पिताजी के जवाबात से भी तो समझ सकते हैं कि यह कोई मामूली शख्स नहीं है। 

क्रमशः                          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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